‘अगर पत्नी सिंदूर नहीं लगाती, मतलब उसे शादी मंजूर नहीं’, कहते हुए गुवाहाटी हाई कोर्ट ने दिलवाया तलाक

BY- FIRE TIMES TEAM

गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने एक पुरुष को इस आधार पर तलाक दे दिया कि एक महिला ने चूड़ी पहनने और सिंदूर लगाने लगाने से इंकार कर दिया, अदालत ने कहा कि यह बातें संकेत करती हैं कि महिला शादी के गठबंधन का हिस्सा बनना नहीं चाहती है।

अदालत ने कहा कि, ऐसी परिस्थितियों में अगर पुरुष को महिला के साथ शादी का संबंध बनाए रखने के लिए मजबूर करना पुरुष और उसके परिवार पर उत्पीड़न का कारण बन सकता है।

मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा और न्यायमूर्ति सौमित्र सैकिया की खंडपीठ ने पति द्वारा दायर एक वैवाहिक याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणियां कीं, जिसमें एक परिवार अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी जिसने तलाक के लिए उसके दावे को खारिज कर दिया था।

परिवार अदालत के आदेश को दरकिनार करते हुए, पीठ ने दावा किया कि हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों के तहत, एक शादीशुदा महिला को चूड़ी और सिंदूर पहनने से मना करने का मतलब है कि वह या तो अविवाहित है या उसने अपने पति के साथ हुई शादी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।

उच्च न्यायालय ने 19 जून को दिए फैसले में कहा, “प्रतिवादी (पत्नी) का ऐसा रुख स्पष्ट इरादे की ओर इशारा करता है कि वह अपीलार्थी (पति) के साथ अपने शादीशुदा जीवन को जारी रखने के लिए वह तैयार नहीं है।”

अदालत ने आगे कहा कि महिला ने अपने पति के परिवार के साथ रहने से इनकार कर दिया था और उसे एक अलग आवास प्रदान करने के लिए मजबूर किया था, जिसे “क्रूरता के कार्य के रूप में माना जा सकता है”।

न्यायधीशों ने कहा, “पारिवारिक अदालत (फैसले को पारित करते समय) ने इस तथ्य को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया था कि महिला ने अपने पति और वृद्ध माता-पिता के भरण-पोषण और वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण अधिनियम, 2007 के प्रावधानों के तहत अपने पति को अपने वैधानिक कर्तव्यों को ना निभाने के लिए मजबूर किया और रोका।”

दोनों ने 17 फरवरी, 2012 को शादी की थी लेकिन कुछ समय बाद ही जब महिला ने अपने पति के घरवालों के साथ रहने से इंकार कर दिया तब दोनों अलग-अलग रहने लगे थे।

अदालत ने कहा कि महिला ने अपने पति और उनके परिवार के सदस्यों पर उनके खिलाफ अत्याचार का आरोप लगाते हुए पुलिस शिकायत दर्ज की थी, लेकिन उन्हें क्रूरता के अधीन करने का आरोप बरकरार नहीं था।

उन्होंने कहा, “यह स्पष्ट है कि शादी को बनाये रखने के लिए कोई उद्देश्य नहीं बचा था क्योंकि दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक सामंजस्य नहीं था।”

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