उड़ीसा: ऊँची जाति के यहाँ बच्ची ने फूल तोड़ा तो 40 परिवार को कर दिया समाज से बहिष्कृत

 BY- FIRE TIMES TEAM

ओडिशा के ढेंकनाल जिले के कांतियो कटेनी गांव में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने जातिवाद को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। एक मामूली सी बात को लेकर यहां चालीस दलित परिवारों को समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है।

स्थानीय निवासियों ने बताया कि एक परिवार द्वारा अपनी आपत्ति दर्ज कराने के बाद मामला दो समुदायों के बीच टकराव में बदल गया। अंततः 40 दलित परिवारों के सामाजिक बहिष्कार का निर्णय ले लिया गया।

लड़की के पिता निरंजन नाइक ने कहा, “हमने तुरंत माफी मांग ली थी ताकि मामले को सुलझाया जा सके, लेकिन घटनाओं के बाद कई बैठकें बुलाई गईं और उन्होंने हमारा बहिष्कार करने का फैसला किया। किसी को हमसे बात करने की अनुमति नहीं है। हमें गाँव के किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में भाग लेने की अनुमति नहीं है।”

लगभग 800 परिवारों वाले इस गाँव में अनुसूचित जाति नाइक समुदाय के 40 परिवार हैं। इस समुदाय ने 17 अगस्त को जिला प्रशासन और संबंधित पुलिस स्टेशन को ज्ञापन सौंपे हैं।

एक ग्रामीण ज्योति नाइक ने बताया कि ग्रामीणों ने हमसे बात करना भी बंद कर दिया है। समान लेने के लिए 5 किमी जाना पड़ता है। उन्होंने कहा जिस जिस स्टोर से वह सामान लेते थे उसने देने के लिए मना कर दिया है।

इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार समुदाय के सदस्यों ने यह भी आरोप लगाया है कि उन्हें गांव की सड़क पर शादियों या अंतिम संस्कार के लिए कोई भी जुलूस निकालने के खिलाफ चेतावनी दी गई है। एक डिक्टेट जारी किया गया है कि हमारे समुदाय के बच्चे स्थानीय सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ सकते हैं। यहां तक ​​कि हमारे समुदाय से ताल्लुक रखने वाले शिक्षकों को भी ज्ञापन सौंपने के लिए कहा गया है।

जबकि गाँव के सरपंच और समिति के सदस्यों ने इन फैसलों पर सहमति व्यक्त की कि ग्रामीणों से समुदाय के सदस्यों से बात नहीं करने के लिए कहा गया है। ग्राम विकास समिति के सचिव हरमोहन मल्लिक ने कहा, “यह सच है कि लोगों से बात न करने के लिए कहा गया था और यह उनके गलत कामों के कारण है। लेकिन अन्य आरोप बेबुनियाद हैं।”

सरपंच प्रणवबंधु दास ने कहा, “यह एक अंतर-सामुदायिक मामला है और अंततः हल हो जाएगा। बहुसंख्यक समुदाय की समस्याएं हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय उन्हें झूठे मामलों में फंसाता है और SC / ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत पुलिस शिकायत दर्ज करता है।

ग्रामीणों के अनुसार ज्ञापन सौंपे जाने के बाद शांति बैठकों के दो दौर आयोजित किए गए हैं लेकिन मामला हल नहीं हुआ है।

कामाख्या नगर उपखंड के उप-कलेक्टर बिष्णु प्रसाद आचार्य ने कहा, “उन्होंने स्थानीय पुलिस से संपर्क किया था, लेकिन वहां लिए गए फैसले से खुश नहीं थे। फिर वे मेरे पास आए। मैंने उन्हें उप-विभागीय पुलिस अधिकारी को निर्देशित किया। मैं दोनों समुदायों के साथ एक शांति बैठक में भी जाऊंगा और मामले को सुलझाने की कोशिश करूंगा।”

पुलिस दूसरे दौर की बातचीत का भी इंतजार कर रही है। आनंद कुमार डुंगडुंग (निरीक्षक प्रभारी तुसुंगा पुलिस स्टेशन) ने कहा, “हमने इसे सुलझाने की कोशिश की है। वे एक समझौता करना चाहते थे और मामले को आगे नहीं खींचना चाहते थे, यही वजह है कि हमने एफआईआर दर्ज नहीं की। हमने दोनों समुदायों के नेताओं के साथ एक और बैठक का आह्वान किया है। यदि वे मामले को हल नहीं करते हैं तो हम आगे बढ़ेंगे और प्राथमिकी दर्ज करेंगे।”

इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पर भी लोग लिख रहे हैं। एक यूजर ने ट्वीट किया, ‘उड़ीसा में 40 दलित परिवारों का समाज से बहिष्कार कर दिया गया क्यूँकि एक 15 साल की बच्ची ऊँची जात वाले के यहाँ से फूल तोड़ लाई थी। और फिर पूछते हो #आरक्षण जाति के आधार पर क्यूँ है??’

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