भारत का सार्वजनिक ऋण काफी ज्यादा हो गया। ऐसा पहली बार हुआ है जब केंद्र सरकार का बकाया कर्ज जून के अंत में 100 ट्रिलियन रुपये को पार कर गया। यानी 100 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा कर्ज।
जून 2019 में यह कर्ज 88.18 लाख करोड़ रुपये था। एक साल में लगभग 13 लाख करोड़ रुपये का भारत पर कर्ज बढ़ गया। यह भारत की जीडीपी का बहुत बड़ा हिस्सा है।
यह केवल कोरोना के कारण नहीं हुआ है। 2019 में भी 2018 की अपेक्षा कर्ज बढ़ा रहा। तब करीब 4 फीसदी का इजाफा हुआ था जिसमें जून 2018 की अपेक्षा 2019 में 3.58 लाख करोड़ का इजाफा हो गया3।
वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) की एक तिमाही रिपोर्ट बताती है कि धीरे-धीरे कर्ज बढ़ रहा था। लेकिन इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2020, या Q1) में 7 ट्रिलियन की अचानक छलांग इसे 100 खरब रुपये से भी आगे बढ़ा दिया।
मार्च 2020 तक यह कर्ज 94.6 लाख करोड़ रुपए था जो कि कोरोना संकट के दौरान तेजी से बढ़ा। यह दिखाता है कि कोरोना संकट के बाद सरकार ने बड़ी मात्रा में कर्ज लिया।
नरेंद्र मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं जिनके शासन काल में भारत सरकार पर 101 लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो गया है। इससे पहले इस आंकड़े तक हम नहीं पहुंचे थे।
भारत वर्तमान में सापेक्ष ऋणग्रस्तता के मामले में 170 देशों के बीच 94 वें स्थान पर है, लेकिन इस वर्ष अधिक उधार लेने के कारण वह इस श्रेणी में काफी नीचे आ सकता है।
2017 के राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन नियमों ने सिफारिश की थी कि मार्च 2023 तक सार्वजनिक ऋण जीडीपी के 40 प्रतिशत के नीचे आ जाये।
कोरोना महामारी ने पूरे विश्व में सरकारी वित्त को एक झटका दिया है और भारत कोई अपवाद नहीं है। लेकिन देश की राजकोषीय स्थिति ऐसी है कि जीडीपी के सिर्फ 1 प्रतिशत से अधिक बजटीय प्रोत्साहन के साथ भारत का ऋण आगे चल रहा है। यह ऋण स्थिरता के बारे में सवाल उठाता है।
हालांकि केंद्र सरकार का राजस्व तनाव में है, लेकिन उसने उस सीमा तक खर्च पर कोई समझौता नहीं किया है।
इस साल मार्च के अंत से जून के अंत तक, ऋण में कूद सभी श्रेणियों में है: आंतरिक ऋण, जो 85% से अधिक ऋण स्टॉक बनाता है, साथ ही बाहरी और सार्वजनिक खाता देयताएं भी।