निजीकरण की प्रक्रिया तेज करने को वित्त मंत्रालय ने उठाये कई बड़े कदम

BY – FIRE TIMES TEAM

मोदी सरकार ने पिछले दिनों कहा था कि सरकार का काम कंपनियां चलाना नहीं है, सिर्फ उनको सही तरह से नियमों के अन्तर्गत रेगुलेट करना है। यह जवाब सरकार ने निजीकरण के सवाल पर दिया था।

सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में भी पूंजी जुटाने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण का जो लक्ष्य रखा था, उसे पूरा नहीं किया जा सका। और मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार ने निजीकरण के साथ-2 विनिवेश करने का भी ऐलान किया है। जिसके रास्ते में चुनौतियां कम नहीं हैं।

ऐसे में वित्त मंत्रालय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर बेहतर नियंत्रण के लिए सार्वजनिक उपक्रम विभाग (DPE) को अपने अधीन लेने के बारे में विचार कर रहा है। मंत्रालय अपनी महत्त्वाकांक्षी निजीकरण की योजना को अमलीजामा पहनाने की तैयारी कर रहा है।

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सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक आर्थिक मामलों के विभाग ने निवेश एवं सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) को पत्र लिखकर इस बारे में विचार करने को कहा है कि क्या सार्वजनिक उपक्रम विभाग (DPE) को वित्त मंत्रालय के तहत लाया जा सकता है क्योंकि दीपम और डीपीई का कुछ कार्यों में एक-दूसरे में दखल होता है। इस समय डीपीई भारी उद्योग और सार्वजनिक उपक्रम मंत्रालय के तहत आता है।

यह विभाग पीएसयू के प्रदर्शन, लाभांश, सरकारी स्वामित्व वाले उपक्रमों के पूंजीगत व्यय के स्तर पर प्रदर्शन, शेयरों के बायबैक की संभावना और कर्म चारियों के वेतन पैकेज की निगरानी रखता है।

ये सभी मुद्दे परस्पर संबंधित हैं और DIPAM को आवंटित कुुछ कामकाज में दखल देते हैं। डीपीई को वित्त मंत्रालय के तहत लाने के कदम का एक मकसद विभागों के बीच प्रशासनिक कुशलता भी लाना है। ऐसे किसी प्रस्ताव को लागू करने से पहले कैबिनेट सचिवालय और प्रधानमंत्री कार्यालय की मंजूरी लेनी होगी।

इस बारे में चर्चा पहली बार नहीं हो रही है। वर्ष 2017 में भी सरकार दीपम और डीपीई के विलय के बारे में विचार कर रही थी, लेकिन वह प्रस्ताव जमीन पर नहीं उतर पाया।

अब सरकार की निजीकरण योजना से पहले DPE को वित्त मंत्रालय के अधीन लाने का प्रस्ताव अहम हो गया है। इसके तहत रणनीतिक क्षेत्रों में पीएसयू में ‘मामूली’ मौजूदगी रखी जाएगी और शेष सरकारी कंपनियों का निजीकरण, विलय होगा या बंद होंगी।

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