किसानों को लेकर सभी पार्टियां तरह-तरह की योजनाओं की घोषणाएं करती हैं। यह घोषणाएं चुनाव से पहले खूब होती हैं और सत्ता में आने के बाद भी जारी रहती हैं। इन सब के बावजूद योजनाओं का न तो सही से क्रियान्वयन होता है और न किसान इन योजनाओं का लाभ ले पाता है।
हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि किसानों से संबंधित जो योजनाएं बनती हैं वह कागज पर ज्यादा जमीन पर नाममात्र ही दिखाई पड़ती हैं। प्रधानमंत्री मोदी 2014 से पहले भी किसानों के जीवन को बदलने की बात करते थे और आज भी।
2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने की भी बात कर रहे हैं। 2020 समाप्त होने को है और शायद ही किसी किसान की आय में बढ़ोतरी हुई हो। इसके उलट हो सकता है किसानों की आय कम हो गई हो।
एनसीआरबी के द्वारा किसानों की आत्महत्या को लेकर जो आंकड़े बताए गए हैं उससे साफ होता है कि किसान अभी भी वैसी ही जिंदगी जी रहा है जैसी पहले जी रहा था। यदि किसान की स्थिति बदली होती तो आत्महत्याएं अब तक रुक गई होती।
2016 से लेकर 2019 तक लगातार किसान आत्महत्याएं करते रहे हैं। जो आंकड़े जारी किए गए हैं उस हिसाब से 2016, 2017, 2018 और 2019 में लगभग 24 हज़ार किसानों ने आत्महत्या की है।
साल आत्महत्याएं
2016 6270
2017 5955
2018 5763
2019 5957
किसानों के साथ ही लगभग इतने ही मजदूरों ने भी आत्महत्याएं की हैं। वैसे तो भारत में किसान और मजदूर में कोई खास अंतर नहीं है। छोटे किसान मजदूरी का भी काम करते हैं। छोटे किसानों की तादात भारत में बड़ी मात्रा में है और यही किसान योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते हैं।
यदि हम मजदूर को एक किसान के रूप में देखें तो अब आत्महत्या का आंकड़ा करीब 50 हजार के आस-पास पहुंच जाएगा। यह आंकड़ा कई देशों की कुल संख्या के बराबर की है।
2015 में किसानों की आत्महत्या की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई थी और इसके पीछे की वजह उस समय के सूखे को बताया गया था। उस साल 8000 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की थी जो कि 2014 से 40 प्रतिशत ज्यादा थी।
2015 के बाद में एनसीआरबी ने 2016 के किसानों की आत्महत्या के आंकड़े ही समय से नहीं दिए। यह आंकड़े 2019 के नवंबर महीने में जारी किए।
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इसके पीछे की वजह कुछ लोगों ने 2019 के लोकसभा चुनाव को बताया था। लोगों का मानना था कि यदि आंकड़े जारी किए गए होते तो विपक्ष किसानों का मुद्दा उठा कर सरकार को घेर सकता था।
आपको बता दूं कि 2009 के चुनाव कांग्रेस ने किसानों के दम पर ही जीते थे। उस समय किसानों का बड़ी मात्रा में लोन माफ किया गया था। शायद यह बीजेपी समझती थी और हो सकता है इसीलिये 2015 के बाद किसानों की आत्महत्या के आंकड़े 2019 में लोकसभा चुनाव होने के बाद जारी किए गए।
किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों की खास बात यह है कि इसमें दक्षिण भारत के राज्यों का नाम ही आगे है। जहाँ पूरे भारत में किसानों की आत्महत्या की औसत दर 10.4 है वहीं केरल में यह 24.3 के आंकड़े पर है।
यह दर्शाता है कि उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत के किसान ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं। इसके पीछे कोई एक वजह तो नहीं लेकिन दक्षिण में नकदी फसल का ज्यादा उत्पादन हो सकती है।