सभापति वेंकैया नायडू द्वारा रविवार को हंगामे पर “गहरा दर्द” व्यक्त करने के बाद, सोमवार सुबह राज्यसभा में विरोध प्रदर्शनों का एक नया दौर शुरू हुआ। आठ विपक्षी सांसदों के खिलाफ उनके “अनियंत्रित व्यवहार” के लिए निलंबन का प्रस्ताव पारित किया गया।
श्री नायडू ने कल हंगामे के बाद उप सभापति हरिवंश के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया।
नायडू ने सदन में कहा, ‘मुझे कल गहरा दर्द हुआ था। सभी सामाजिक दूरी और कोरोना प्रोटोकॉल का कल उल्लंघन किया गया था। जो भी हुआ तर्क-वितर्क किया। राज्यसभा के लिए यह एक बुरा दिन था। डिप्टी चेयरमैन को शारीरिक रूप से खतरा था। मैं उनके शारीरिक छति को लेकर चिंतित था।’
दरअसल रविवार को उच्च सदन में अधिनियम के विरोध में हंगामा शुरू हो गया था। विरोध के बाद सदन को स्थगित करना पड़ा था। उपसभापति के फैसले के बाद सत्र को 1 बजे से आगे बढ़ाने का फैसला किया गया।
उधर विपक्ष ने दलील दी कि विवादास्पद फार्म बिल पर चर्चा जारी क्यों नहीं रखी गई। इसके बाद ही हंगामा शुरू हुआ और सदन ने विवादास्पद फार्म विधेयकों के पारित होने के दौरान अपमानजनक दृश्य देखा।
विपक्षी दलों के सदस्यों ने टेबल से कागजात छीन लिए और यहां तक कि अध्यक्ष के माइक को भी तोड़ दिया। यह दृश्य वर्तमान सरकार में शायद पहली बार देखने को मिला है।
उधर किसानों से संबंधित विधेयकों को लेकर सड़क पर भी खूब हंगामा देखने को मिला। जहां पंजाब में किसानों ने एकजुटता के साथ प्रदर्शन किया तो वहीं छत्तीसगढ़ जैसे राज्य राज्य में छोटे किसानों ने व्यक्तिगत तौर पर सरकार के इन विधेयकों का विरोध किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिल के पास होने पर देश के किसानों को बधाई दी। उन्होंने ट्वीट में लिखा, ‘भारतीय कृषि के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण! हमारे मेहनती किसानों को संसद में प्रमुख विधेयकों के पारित होने पर बधाई, जो कृषि क्षेत्र के संपूर्ण परिवर्तन के साथ-साथ करोड़ों किसानों को सशक्त बनाएंगे।’
A watershed moment in the history of Indian agriculture! Congratulations to our hardworking farmers on the passage of key bills in Parliament, which will ensure a complete transformation of the agriculture sector as well as empower crores of farmers.
— Narendra Modi (@narendramodi) September 20, 2020
छत्तीसगढ़ में किसान सभा ने भी विरोधी स्वर अपनाया। उसने सरकार से किसानों से संबंधित इन नियमों को वापस लेने को कहा। साथ ही केंद्र की मोदी सरकार को चेतावनी भी दी।
न सिर्फ 250 किसान संगठनों का अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, बल्कि भाकियू (टिकैत), भूपेन्द्र मान व राजोवाल के मोर्चों से जुड़े किसान संगठन सहित खुद भाजपा का किसान संगठन भी इन बिलों के खिलाफ खड़ा है।