कोरोना संकट के बीच गहराता अर्थव्यवस्था, बेरोज़गारी और गरीबी का संकट ?

BY – HARSHIL JAIN

कोरोना से आज पूरी दुनिया में कोहराम मचा हुआ है। हर दिन कोरोना के मरीज़ों की बढ़ती संख्या इस बात का सबूत है कि कोरोना का ये संकट बहुत लंबी पारी खेलने की तैयारी में है।

एक तरफ दुनियाभर के विभिन्न देशो की स्वास्थ्य व्यवस्था का कच्चा चिट्ठा सामने आ रहा है तो वहीं अर्थव्यवस्था, बेरोज़गारी और गरीबी जैसी अन्य समस्याओं की हकीकत भी दिखने लगी है।

चीन से शुरू हुई इस बीमारी ने पूरी दुनिया के होश उड़ा दिए हैं। एक तरफ दुनियाभर के वैज्ञानिक, डॉक्टर और मेडिकल एक्सपर्ट कोरोना का इलाज ढूंढने में लगे हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ सरकारें रणनीतिकारों और अर्थशास्त्रियों के साथ मिल कर अपने देश की अर्थव्यवस्था संभालने में जूझ रही हैं।

अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों के साथ कई बड़े देशों की अर्थव्यवस्था डगमगा गयी है और इसका असर कई सालों तक देखने को मिलेगा।

इस वजह से विश्व गंभीर आर्थिक मंदी की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। दुनियाभर के बड़े-छोटे उद्योग और रोज़गारों को इसकी तपिश झेलनी होगी। खासतौर से निम्न तथा मध्यम आय वाले देशों पर इसका अतिभयावह असर पड़ेगा।

भारत इस संकट से अछूता नहीं है। 125 करोड़ से ज़्यादा की जनसंख्या वाले इस देश को सरकारी और निजी क्षेत्र पर आए इस संकट का बराबरी से निराकरण करना होगा।

लॉकडाउन के चलते देश के अधिकतम व्यवसाय बंद पड़े हैं। आर्थिक गतिविधियों में भी भारी गिरावट आई है। एक महीने से ज़्यादा चलने वाले इस लॉकडाउन ने सरकार और जनता के सामने नई समस्याओं का भंडार लाकर खड़ा कर दिया है।

सरकार ने सभी से अपील की थी कि कामगारों के वेतन ना काटे जाएं। लेकिन सरकार को इस बात की भी समीक्षा करनी होगी कि निजी क्षेत्र के कारोबारी अप्रैल माह का वेतन कैसे देंगे। देश के ज़्यादातर कारखानों और मिलों में काम बंद हो गया है।

उत्पादन ना होने से कारोबार ठप पड़े हैं और आय का कोई ज़रिया नहीं है। ऐसे में कारोबारियों और उद्दोगपतियों को वेतन चुकाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस समय बड़ा खतरा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग और छोटे व्यापारीयों पर मंडरा रहा है जिन्हें भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।

कुछ विशेषज्ञों के अनुसार लॉकडाउन के खत्म होने के साथ इन व्यापारों के बंद होने की आशंका भी जताई जा रही है। ऐसी स्थिति में कई कामगार बेरोज़गार हो जाएंगे जो भारत के भविष्य के लिए बिल्कुल अच्छा संकेत नहीं है।

लॉकडाउन के दौरान विकास कार्यों पर भी रोक लगी है। कारणवश लाखों कारीगर और दिहाड़ी मज़दूर अपना काम खो बैठे हैं। आने वाले समय में इन मज़दूरों की आर्थिक हालत और ज़्यादा खराब होने की काफ़ी संभावना है और इन्हें जल्द काम मिलने की आशंका कम जताई जा रही है।

इन विपरीत परिस्थितियों में ना सिर्फ मज़दूरों के रोजगार छिन जाएंगे लेकिन साथ ही साथ इनके आर्थिक स्तर पर भी लंबे समय तक गहरा प्रभाव रहेगा।

इस समस्या से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सहित अन्य संस्थाओं ने कई प्रकार के आंकलन किये हैं। विश्व व्यापार संगठन के अनुसार इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय व्यापार 13 से 32 प्रतिशत तक कम हो सकता है। वर्ल्ड बैंक ने वैश्विक जीडीपी 2.1 से 3.9 प्रतिशत तक गिरने की आशंका जताई है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अनुमान लगाया है कि वैश्विक स्तर पर 25 लाख बेरोज़गार बढ़ सकते है। आईएलओ के मुताबिक 40 करोड़ भारतीय कामगारों को गरीबी की मार पड़ेगी।

मध्यप्रदेश में भारत का 25 प्रतिशत बीड़ी उत्पादन होता है जिसमे अधिकतम मज़दूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। लॉकडाउन के चलते केवल मध्यप्रदेश में 14 लाख बीड़ी मज़दूरों की रोज़ी रोटी पर संकट के बादल छा गए हैं। इससे हम पूरे भारत में असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे श्रमिको की भारी तादाद का अनुमान लगा सकते हैं।

कोरोना महामारी से जूझने के पहले ही भारत की अर्थव्यवस्था के रंग उड़ने शुरू हो गए थे। देखा जाए तो इस संकट ने आग में घी का काम किया है। इसका असर आने वाले कई सालों तक कुछ क्षेत्रों में अपना प्रकोप दिखायेगा।

भारतीय बाज़ार में ऑटोमोबाइल सेक्टर की हालत पहले ही खराब थी। लॉकडाउन से इस उद्योग को बड़ा झटका लगा है। अगले कुछ महीनों में इसमें कार्यरत लोगों के रोज़गार पर बुरा असर पड़ सकता है और उन्हें नौकरी से निकाला भी जा सकता है। इस नुकसान की भरपाई करने में काफ़ी समय लगेगा।

लॉकडाउन ने एक और सेक्टर को मुश्किल में डाल दिया है – पर्यटन। पर्यटन भारत में रोज़गार प्रदान करने वाले प्रमुख सेक्टरों में से एक है। इस पर लाखों लोग अपनी रोज़ी रोटी के लिए निर्भर हैं। इससे जुड़े उद्योग एवं पर्यटन स्थल लंबे समय तक के लिए कोरोना के दुष्परिणामों से प्रभावित रहेंगे जिसके कारणवश कई लोगों के बेरोज़गार होने की संभावना बढ़ जाती है।

पर्यटन पर मुख्य रूप से निर्भर सिक्किम ने कोरोना पर काबू पाने में सफलता तो हासिल कर ली है लेकिन वहाँ कोरोना के कुछ नए केस मिलने से लॉकडाउन के बाद के परिणाम बताना अभी मुश्किल है।

‘वर्क फ्रॉम होम’ के रूप में एक बड़ा बदलाव आया है। इससे हमारी कार्य प्रणाली भी बदल गयी है और भविष्य में इसके इर्दगिर्द दूसरे बदलाव लाने की ओर कदम बढ़ रहे हैं।

इसी की उपज है ऑटोमेशन यानी स्वचालन। मैन्युफैक्चरिंग जगत में तो ऑटोमेशन काफ़ी पहले दस्तक दे चुका था लेकिन अब हर प्रकार की कंपनियों के लिए एक मददगार हथियार के रूप में उभर रहा है।

ऑटोमेशन की रफ्तार बढ़ने से दुनिया को इसके दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। इसके फायदे और नुकसान दोनों ही हैं लेकिन इसके दीर्घावधिक प्रभाव नुकसानदेय साबित होंगे और ये नुकसान अपरिवर्तनीय होगा।

ऑटोमेशन से दुनियाभर में 40 प्रतिशत रोज़गार खत्म होने की संभावना जताई गई है। लॉकडाउन से यह आंकड़ा बढ़ने की आशंका भी पैदा होती है।

इन सभी बातों से यह तो साबित होता है कि यह संकट अलग-अलग क्षेत्रों पर अलग-अलग प्रकार का प्रभाव डालेगा जिसकी अवधि भी अलग-अलग होगी। ऐसी स्थिति में वर्ष 2021 की शुरुआत के पहले किसी भी सेक्टर में हालात सामान्य होने की उम्मीद कम ही है।

लॉकडाउन ने हमारी वर्तमान परिस्थितियों में तो काफ़ी खलल डाली है लेकिन एक पहलू ऐसा भी है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। पिछले एक महीने में यानी मार्च माह के मध्य से एक सेक्टर है जिसने ज़ोर पकड़ लिया है और काफ़ी तेज़ रफ़्तार से बढ़ रहा है।

लॉकडाउन के समय में लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे लेकिन इंटरनेट के माध्यम से पूरी दुनिया में हो रही हलचल के बारे में पता कर रहे हैं। इतना ही नहीं सोशल मीडिया एक क्रांति के दौर से गुज़र रहा है जिसका कारण है उपभोगताओं की बढ़ती संख्या और ज़रूरतें।

इसका लाभ उन सभी कंपनियों को तो हो ही रहा है जो पहले से बाज़ार में अपनी पकड़ बनाये हुए थी लेकिन साथ ही साथ जो नई कंपनी उपभोगताओं की उम्मीद पर खरी उतर रही है उसे भी अपना नाम करने का मौका मिल गया है।

टिक-टॉक, व्हाट्सऐप, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया ऐप वर्क-फ्रॉम-होम का सहारा लेकर काम कर रहे हैं तो वहीं ज़ूम, हाउसपार्टी, वेबेक्स जैसे ऐप्स ने अपने भविष्य की मज़बूत नींव तैयार कर ली है।

कई स्टार्टअप के लिए ये सुनहरा मौका साबित होगा। इससे भविष्य में नए रोज़गार बढ़ेंगे जिसकी भारत को सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।

ऑनलाइन व्यापार एक नये चरण में सामने आ रहा है। कई स्टार्टअप जिनमें दो से तीन लोग कार्यरत थे आज बड़ी कंपनियों की कतार में हैं।

छोटे स्तर पर काम करने के बाद अब ये इंटरनेट के माध्यम से पूरे देश में जाने जा रहे हैं जिसका परिणाम ना केवल इनके लिए लाभदायक साबित होगा बल्कि देश की अर्थव्यस्था संभालने में भी योगदान देगा।

इंटरनेट पर पिछले कुछ समय में तेज़ी से अपनी पहचान बनाने वाले मुख्य स्टार्टअप में शामिल है – ड्रोन सुविधा, ऑनलाइन लर्निंग ऐप, डिजिटल पेमेंट ऐप, ज़रूरत का सामान होम डिलीवरी करने वाले ऐप, वीडियो कॉल ऐप, इत्यादि।

इंटरनेट व्यवसाय में इस क्रांतिकारी बदलाव के कारण रोज़गार देने की क्षमता बढ़ गयी है। ना केवल यह आने वाले समय के लिए महत्त्वपूर्ण है बल्कि वर्तमान में चल रहे ज़रूरी काम करने में भी सहायक साबित हो रहे हैं।

इसी से जुड़ा एक तबका और है जो लॉकडाउन में ज़ोर पकड़ रही आर्थिक मंदी के विपरीत ज़्यादा सक्रिय होता जा रहा है- वेब डिज़ाइनर, प्रोग्रामर, सोशल मीडिया मैनेजर, लेखक, ब्लॉगर, विज्ञापन विशेषज्ञ, इत्यादि।

इन सभी की कार्य प्रणाली लॉकडाउन के समय में मददगार साबित हुई है और उम्मीद है कि इस क्षेत्र में आने वाले समय मे रोज़गार के भारी अवसर उत्पन्न होंगे।

जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते है उसी तरह पूरे विश्व पर छाया कोरोना संकट किसी के लिए घातक साबित हो रहा है तो किसी के लिए उद्योग जगत में नई उम्मीद जगा रहा है।

आंकलन करने पर यह तो मालूम होता है कि इसका असर लंबे समय तक रहने वाला है और ये पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव डालेगा लेकिन इस बात को भी महत्त्व देना होगा कि जो व्यवसाय इस समय तरक्की की ओर बढ़ रहे हैं उन्हें बेहतर करने के लिए उचित कदम उठाए जाएं।

बेरोज़गारी गरीबी की जड़ ना बने इसके लिए सरकार को पूरे प्रयास करने चाहिए। सरकार की अक्षमता देश को कई सालों पीछे ले जा सकती है। हालांकि मौजूदा दौर में सरकार ने पूरी निष्ठा के साथ देश की भलाई के लिए प्रयत्न किए हैं।

भारत में बेरोज़गारी का आंकड़ा पहले ही बहुत निचले स्तर पर था इसलिये इस समस्या के लड़ने के लिए सही दिशा में सही समय पर सही कदम उठाना बहुत ज़रूरी है।

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