BY- FIRE TIMES TEAM
ऑक्सफ़ेम इंडिया की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, जो लोग अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) से संबंधित नहीं हैं, वे दो समुदायों के लोगों की तुलना में प्रति माह 5,000 रुपये अधिक कमाते हैं।
‘इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022’ के अनुसार, 2019-2020 में 15 वर्ष और उससे अधिक की आयु वर्ग की मुस्लिम आबादी का 15.6 प्रतिशत नियमित वेतन वाली नौकरियों से जुड़ा हुआ था। जबकि इसी अवधि में गैर-मुस्लिम आबादी का 23.3 प्रतिशत नियमित वेतन वाली नौकरियों से जुड़ा हुआ था।
शहरी मुसलमानों के लिए कम रोजगार भेदभाव को जिम्मेदार ठहराता है। 2019-20 में, वेतनभोगी श्रमिकों के रूप में लगे मुस्लिम और गैर-मुस्लिम के बीच का 70 प्रतिशत अंतर भेदभाव के कारण था।
ऑक्सफ़ेम की रिपोर्ट में कहा गया है कि स्व-नियोजित एससी/एसटी गैर-एससी/एसटी की तुलना में 5,000 रुपये कम कमाते हैं और इस अंतर में भेदभाव का हिस्सा 41 फीसदी है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि ग्रामीण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों को आकस्मिक रोजगार में भेदभाव में तेजी से वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है।
कोविड के दौरान वेतनभोगी श्रमिकों के लिए, मुस्लिम सबसे अधिक प्रभावित समूह के रूप में उभरे, जिसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिशत के आंकड़े 11.8 से बढ़कर 40.9 हो गए, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति (5.6 से 28.3) और सामान्य श्रेणी (5.4 से 28.1) के लिए यह वृद्धि कम रही।
ऑक्सफ़ेम की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में मुसलमानों की कमाई में सबसे ज्यादा 13 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि अन्य में यह 9 फीसदी के करीब थी।
ग्रामीण क्षेत्रों में, स्वरोजगार श्रेणी में, मुसलमानों की आय में सबसे अधिक 18 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और अन्य के लिए 10 प्रतिशत से कम थी।
2017 में, नीचे के 20 प्रतिशत आय वर्ग के लोग, जो एससी और एसटी समुदायों से थे, उन्हें ओबीसी और समान आय वर्ग के अन्य लोगों की तुलना में 1.7 गुना कम अस्पताल में देखभाल मिली।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐतिहासिक रूप से दलित और आदिवासी जैसे उत्पीड़ित समुदायों के साथ-साथ मुस्लिम जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी नौकरियों, आजीविका और कृषि ऋण तक पहुंचने में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
शहरी क्षेत्रों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए औसत आय, जो नियमित कर्मचारी हैं, सामान्य वर्ग के लोगों के लिए 20,346 रुपये के मुकाबले 15,312 रुपये है।
ऑक्सफ़ेम इंडिया के द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सामान्य वर्ग एससी-एसटी की तुलना में 33 प्रतिशत अधिक कमा रहा है। स्व-नियोजित श्रमिकों की औसत कमाई सामान्य वर्ग एक लोगों लिए 15,878 रुपये है तो वहीं एससी-एसटी के लिए 10,533 रुपये है। ग्रामीण एससी और एसटी समुदायों को आकस्मिक रोजगार में भेदभाव में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है।
स्व-नियोजित गैर-एससी/एसटी कर्मचारी अपने एससी या एसटी समकक्षों की तुलना में एक तिहाई अधिक कमाते हैं। कई खेतिहर मजदूर एससी या एसटी समुदायों से होने के बावजूद कृषि के लिए ऋण प्राप्त करने में जाति भी एक बड़ी बाधा के रूप में कार्य करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगड़ी जातियों को मिलने वाले क्रेडिट शेयरों में एसटी और एससी को एक चौथाई से भी कम हिस्सा मिलता है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि ग्रामीण अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोग आकस्मिक रोजगार में भेदभाव का सामना कर रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2019-2020 में ग्रामीण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आकस्मिक वेतन श्रमिकों के बीच असमान आय (79 प्रतिशत) थी। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के मुसलमानों में कोविड-19 की पहली तिमाही के दौरान सबसे तेजी से बेरोजगारी (17 प्रतिशत) देखी गई।
गैर-मुसलमानों की तुलना में मुसलमानों को वेतनभोगी नौकरियों और स्वरोजगार के माध्यम से आय प्राप्त करने में बहुआयामी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी गैर-मुसलमान औसतन 20,346 रुपये कमाते हैं, जो 13,672 रुपये कमाने वाले मुसलमानों की तुलना में 1.5 गुना अधिक है।
स्व-नियोजित गैर-मुसलमान औसतन 15,878 रुपये कमाते हैं, जबकि स्व-नियोजित मुसलमान शहरी स्व-रोजगार में समुदाय के अधिक प्रतिनिधित्व के बावजूद 11,421 रुपये कमाते हैं। इसका मतलब है कि गैर-मुस्लिम स्वरोजगार में मुसलमानों की तुलना में एक तिहाई अधिक कमा रहे हैं।
ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर ने कहा कि समाज में भेदभाव का नतीजा बहुआयामी है, न केवल सामाजिक और नैतिक बल्कि आर्थिक भी, जिसके प्रतिकूल परिणाम होते हैं।
ये निष्कर्ष 2004-05 से 2019-20 तक रोजगार और श्रम पर सरकारी आंकड़ों पर आधारित हैं।
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