नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री की शपथ लेने जा रहे हैं। 15 साल के शासन का बाद एक बार फिर वह बिहार की जिम्मेदारी संभालने जा रहे हैं।
पिछले 15 साल के शासन की तुलना में इस बार नीतीश कुमार शायद उतनी स्वतंत्रता पूर्वक कार्य न कर पाएं। इसके पीछे बिहार के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की कम सफलता है। दरअसल इस बार नीतीश कुमार की पार्टी की बेहद कम सीट प्राप्त हुई हैं।
उनकी पार्टी इस बार 43 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई जबकि बीजेपी 74 पर। यही कारण है कि अब तक जेडीयू जो बड़े भाई की भूमिका में थी वह छोटे भाई की भूमिका में आ गई है।
एनडीए में अब सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी है और इसीलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि बिहार में उसी की चलेगी। नीतीश बस नाममात्र के मुख्यमंत्री बनकर रह जाएंगे।
इसी को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री तारिक अनवर ने तंज भी कसा है। उन्होंने कहा,
हालिया बिहार विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद भले ही नीतीश कुमार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन जाएं लेकिन इस बार राज्य की बागडोर किसी और के हाथ में होगी और नीतीश रिमोट से संचालित सीएम होंगे।
समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में अनवर ने कहा कि बीजेपी ने जानबूझकर और सियासी रणनीति के तहत नीतीश कुमार को कमजोर किया है।
इस बीच नीतीश कुमार को एनडीए दल का नेता चुन लिया गया है। वह विधायकों के साथ राज्यपाल से मिलने भी पहुंचे।
243 सीट वाले बिहार विधानसभा चुनाव में राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। उसे कुल 75 सीटें मिली जबकि दूसरे नंबर पर बीजेपी रही जिसे 74 पर जीत मिली।
जेडीयू को 43 सीट प्राप्त हुई और वह इस बार तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। कुल मिलाकर एनडीए को इस बार 125 सीटें प्राप्त हुई हैं।
कांग्रेस की हालत सबसे ज्यादा खराब हुई है। उसे 20 सीटें भी प्राप्त नहीं हो पाईं जबकि वह भी 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी।
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