फोन कॉल पर जाति-आधारित टिप्पणी SC/ST एक्ट के तहत अपराध नहीं है: हाई कोर्ट

BY- FIRE TIMES TEAM

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने फैसला सुनते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST ACT) के तहत एक फोन कॉल के दौरान जाति-आधारित टिप्पणी अपराध नहीं है।

पीठ ने तर्क दिया कि चूंकि फोन पर की गई जाति आधारित टिप्पणी किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के सामने नहीं कि गई इसलिए यह नहीं माना जा सकता है कि टिप्पणी अपमान करने के मकसद सेे की गई है।

न्यायमूर्ति हरनरेश सिंह गिल ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र के दो निवासियों के खिलाफ पहली सूचना रिपोर्ट को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

आरोपियों ने 2017 में एक फोन कॉल पर ग्राम प्रधान के खिलाफ कथित तौर पर जातिवादी टिप्पणियां की थीं।

मई 2019 में एक ट्रायल कोर्ट द्वारा दोनों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। आरोपी ने फिर उच्च न्यायालय का रुख किया।

पीठ ने कहा, “किसी भी व्यक्ति या सार्वजनिक रूप से किसी के सामने अगर किसी व्यक्ति पर जाति आधारित टिप्पणी नहीं कि गई है, तो इसका मतलब यह माना जायेगा कि यह शिकायतकर्ता को अपमानित करने के इरादे सी नहीं कि गई, जो अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय से है।”

पीठ ने आगे कहा, “इस प्रकार वास्तव में एससी और एसटी अधिनियम, 1989 के तहत इस अपराध का संज्ञान नहीं लिया जा सकता है।”

न्यायमूर्ति गिल ने कहा कि यह आरोप लगाया जाना चाहिए कि अभियुक्त ने जानबूझकर सार्वजनिक स्थान पर समुदाय के किसी सदस्य का अपमान किया, इसके लिए अधिनियम के तहत अपराध माना जाना जाएगा।

फैसले में कहा गया है कि “एक बार यह स्वीकार कर लिया जाता है कि मोबाइल फोन पर कथित बातचीत सार्वजनिक रूप से नहीं हुई थी और न ही किसी तीसरे पक्ष की गवाही हुई थी, तो यह माना जायेगा कि जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल अपमानित करने के लिए नहीं किया था।”

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