विश्लेषण: क्या यूपी के बगैर दिल्ली की सत्ता मिल सकती हैं?

BY- PRIYANSHU KUSHWAHA & NISHANT GAUTAM

2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती की मैराथन रैलियां नहीं हो पाई। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में बसपा कमजोर पड़ी तो भाजपा को इससे जमीनी तौर पर फ़ायदा हुआ। विपक्ष को नुक्सान उठाना पड़ा। विपक्ष यानी अखिलेश। चुनाव से 6 महीने पूर्व तक बिल्कुल गायब रहने वाले अखिलेश अचानक विपक्ष के एक मात्र चेहरा घोषित हो गए थे।

विपक्ष का सारा वोट पोलराइज्ड होकर सपा के साथ आया, इससे भी मायावती को नुक्सान हुआ, कांग्रेस को नुक्सान हुआ। कांग्रेस के साथ बचे-खुचे बाभन भी भाजपा के यहां दरी बिछाने चले गए। इन सब के बीच अखिलेश, योगी, राजभर और प्रियंका की खूब हवाबाजी हुई, मायावती उस हवाबाजी को दूर से देखती रही। अखिलेश भारी वोट शेयर पा कर भी सरकार नहीं बना पाए।

आज भाजपा यह भ्रांति बना चुकी है कि उसने मायावती का कोर वोट तोड़ लिया है, जाने-माने राजनीतिज्ञ भी इसी में उलझे है। लोगों को लगता है कि बसपा का वोट भाजपा में शिफ्ट हो गया।

जब आप भी ऐसा सोचते है तो भाजपा की साज़िश में फंसते चले जाते है क्योंकि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता। आगमी चुनाव में यही भाजपा शिवसेना के वोटों पर दावा ठोकेगी, जदयू के गैर-यादव ओबीसी वोट को अपना बताएगी। मीडिया में इसका हौआ बनेगा। जदयू शिवसेना समाप्त हो गई, कांग्रेस डूबती हुई जहाज है… आप इसे सही मान के भाजपा को वोट दे देंगे।

इसीलिए यहां मत उलझिए, उस फॉर्मूले को देखिए जहां से दिल्ली फतेह हो सके। बिहार से खुलने वाली गाड़ी यूपी के रास्ते ही दिल्ली पहुंचती है, दूसरे सभी रास्ते लम्बे है। भाजपा को हराना अकेले पिछड़ों के बस की बात नहीं है, उसे दलित ही हराएंगे। इसलिए मायावती को साथ लाए बिना यूपी में कुछ नहीं बदल सकता। बिहार बदला अब यूपी बदलिए। ऐसा हुआ तो भाजपा दो अंकों में आ जाएगी।

अकसर चुनाव से पहले हमारी मीडिया एकतरफा बाईपोल रिजल्ट सुनाने लग जाती है जिसे आप हम सभी अच्छे से जानते हैं और ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि वोटर्स को लगे की सिर्फ एक विशेष पार्टी को छोड़कर बाकी सभी पार्टी काफी कमजोर हो चुकी हैं।

ध्यान रखने वाली बात तो यहाँ पर यही है की हमें बार-बार जो दिखाया जाता है बताया जाता है हम उसी पर यकीन करने लगते हैं। उदाहरण के तौर पर याद करिए किस तरह से 2014 के लोकसभा चुनाव होने से पहले से ही हमें हर जगह सिर्फ मोदी-मोदी दिखाया जाने लगा था। चाहें टीवी हो या अख़बार या रेडियो हर जगह बस मोदी- मोदी का गुणगान था और देखा जाए आज भी वही चल रहा है।

आम जानता को लगता है कि वे अपने मन से अपनी मर्जी से वोट दे रहे हैं लेकिन सच तो ये है कि सबका दिमाग़ हैक कर लिया जाता है मीडिया के इस्तेमाल से। तो याद रखिए जो आप देखते हैं वो हमेशा सच नहीं होता है।

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