BY- ई० प्रतीक गौतम
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ (केंद्रीय विश्वविद्यालय) जो गरीब और वंचित तबके के लिए जो समाज में सबसे पीछे खड़ा है उस समाज को उच्चशिक्षा देने के उद्देश्य से बनाया गया है। लेकिन आए दिन विश्वविद्यालय में सामंती, जातिवादी सोच के प्रोफेसरों ने इसके उद्देश्यों से अलग काम करने की ठान रखी है।
शिक्षा विभाग के डीन/विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अरविंद कुमार झा का इतिहास ही दलित विरोधी रहा है । उनकी मंशा हमेशा दलित छात्रों को प्रवेश ना देने की रही है।
इस कोरोना महामारी में देश का ट्रांसपोर्ट साधन बन्द है। फरवरी-मार्च 2020 में एमफिल-पीएचडी प्रवेश परीक्षा हुई थी जिसका मार्च ही परिणाम आ गया था। लॉक डाउन के चलते प्रवेश के साक्षात्कार नहीं हो पाए थे।
लेकिन प्रो अरविंद कुमार झा ने कुलपति के आदेशों का अनदेखा किया और विश्वविद्यालय के नियमों को ताक पर रखकर आने वाली 5 जून 2020 को शिक्षा विभाग के पीएचडी में प्रवेश के लिए ऑनलाइन इंटरव्यू आयोजित किया है।
यह सभी जानते हैं कि अभी भी बहुत से ऐसे छात्र हैं जो गांव के सुदूर क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ पर नेटवर्क की समस्या रहती है ऐसे में वो इंटरव्यू दे नही पाएंगे, ऐसे में उन्हें शायद पीएचडी में प्रवेश न मिल पाए।
देश के प्रधानमंत्री बड़े दावे करते हैं कि वह दलितों के साथ है पर ऐसा प्रतीत नही हो रहा है।
कुलपति महोदय से बीबीएयू के छात्रों ने अनुरोध किया है कि तत्काल इस ऑनलाइन इंटरव्यू पर रोक लगा कर यथा स्थिति को देखते हुए जो छात्रों के हित में हो वो फैसला लेें।
आपको बता दें कि, प्रो झा के निर्देशन में वर्तमान में पीएचडी कर रहा एक छात्र अंशुमान शर्मा को फरवरी -मार्च 2020 की पीएचडी प्रवेश परीक्षा में सामान्य वर्ग के छात्रों को पास कराने के लिए झा ने अंशुमान शर्मा को SC में आवेदन कराकर एग्जाम में बैठाया था।
2018 में झा ने सेमिनार से बाबासाहेब की फ़ोटो भी हटा दी थी।