बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में 30 सितंबर को फैसला आ गया। इस फैसले में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया गया। कोर्ट ने इसके पीछे मजबूत सबूत का अभाव बताया है। इसी फैसले को लेकर अब लोग सवाल उठा रहे हैं।
बाबरी मस्जिद विध्वंस केस की जांच करने वाले जस्टिस लिब्रहान ने भी न्यायालय के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि बाबरी मस्जिद को गिराना एक साजिश थी और मुझे अब भी इसपर भरोसा है।
उन्होंने कहा, ‘मेरे पास सबूत रखे गए थे उससे साफ था कि बाबरी मस्जिद को ढहाना सुनियोजित था। मुझे याद है कि उमा भारती ने इस घटना के लिए जिम्मेदारी भी ली थी। आखिर किसी अनदेखी ने तो मस्जिद गिराई नहीं, यह काम इंसानों ने ही किया।’
बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच के लिए 1992 में गठित लिब्रहान आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने 2009 में अपनी रिपोर्ट में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित आरएसएस और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को दोषी माना था। सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में आयोग ने कहा था कि “उन्होंने या तो सक्रिय रूप से या निष्क्रिय रूप से विध्वंस का समर्थन किया।”
आयोग ने कहा था कि कारसेवकों का अयोध्या पहुंचना न तो अचानक था और न वर सब अपनी मर्जी से वहां गए थे। यह पूरी तरह से सुनियोजित था, जिसकी पहले से ही तैयारी कर की गई थी।
इस आयोग ने 60 से अधिक लोगों के नाम रिपोर्ट में दर्ज किए थे जिनमें भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी, जोशी, भारती और एबी वाजपेयी, आरएसएस और वीएचपी नेता, नौकरशाह शामिल हैं।
जस्टिस लिब्रहान ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि “मेरे निष्कर्ष एकदम सही और ईमानदार थे। इसमें कोई पक्षपात नहीं किया गया है” इस रिपोर्ट में एक जगह कहा गया है कि इन वरिष्ठ नेताओं ने सक्रिय या निष्क्रिय तौर पर मस्जिद तोड़ने का समर्थन किया।
कोर्ट द्वारा दिये गए निर्णय पर जस्टिस लिब्रहान ने बोलने से मना कर दिया।