वर्तमान समय में जब भारत के बुनियादी मुद्दों पर बात होनी चाहिए तब हमारा बाज़ारू मीडिया पैसे के पीछे भागते हुए आम जनता को भूल बैठा है। कोरोना संकट ने एक बार फिर भारतीय मीडिया की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करने चाहिए तब हमारी मुख्यधारा की मीडिया विपक्ष को कटघड़े में खड़ा कर रही है।
वर्तमान में जो समाचार पत्र और टीवी चैनलों का हाल हो गया है वह शायद इंदिरा गांधी के समय भी नहीं हुआ था जब आपातकाल लगा था। उस समय विरोध स्वरूप संपादकीय खाली छोड़ दिये जाते थे। पत्रकार गिरफ्तार होने के बाद भी सत्ता से सवाल कर रहे थे। कुछ तो बैकग्राउंड से किसी प्रकार छुपकर इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के खिलाफ लिख रहे थे।
अब टीवी चैनल पाकिस्तान से होकर हिन्दू-मुस्लिम की डिबेट पर आकर रुक जाते हैं। इससे आगे बढ़ते हैं तो राहुल गांधी की कार्यशैली तक पहुंच पाते हैं। उनकी यह भी हिम्मत नहीं होती कि एक बार प्रधानमंत्री से यह सवाल पूछ लें कि 6 साल बाद भी वह प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों नहीं करते।
खैर प्रधानमंत्री से सवाल करना तो बहुत आगे की बात है गोदी मीडिया की इतनी भी हिम्मत नहीं होती कि वह कोरोना संकट के बीच सरकार के द्वारा किस प्रकार की व्यवस्था की गई है उसपर ही सवाल पूछ लें।
पैसे के आगे वह अपनी नैतिकता ही भूलते जा रहे हैं। जब कोरोना के संक्रमण का कुल आंकड़ा 10 लाख पहुंच गया है तब गोदी मीडिया जनता को दिखा रही है कि अमिताभ बच्चन ने सुबह उठकर नास्ता किया, रात में उनको अच्छी नींद आई।
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केवल कोरोना संकट ही नहीं बल्कि देश की आर्थिक स्थिति, कई राज्यों की बाढ़, बेरोजगारी व भुखमरी जैसे मुद्दों पर भी गोदी मीडिया खामोश है। यदि वह जनता के हित में काम कर रही होती तो अमिताभ बच्चन ने नास्ता कैसा किया या उनको नींद अच्छी आयी की जगह असम में बाढ़ से प्रभावित लोगों की मुसीबत दिखती।

असम में बाढ़ से करीब 40 लाख लोग प्रभावित हुए हैं जबकि 73 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। काजीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व का 85 फीसदी हिस्सा जलमग्न हो गया है। यहां 86 जानवरों की मौत हो चुकी है जिनमें गैंडे, हिरन और जंगली सुवर शामिल हैं।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी असम की बाढ़ को लेकर सवाल उठा रहे हैं। उन्होंने ट्वीट के माध्यम से यहां के लोगों के लिए सांत्वना भी व्यक्त की।
पूरा देश असम के साथ है।
असम के लोग अपने हिम्मती स्वभाव से इस मुसीबत का डटकर सामना कर रहे हैं और इस आपदा से उबर आयेंगे।
कॉंग्रेस कार्यकर्ताओं से अपील है कि हर संभव मदद का हाथ बढ़ायें। pic.twitter.com/FZ9SnM1FZK
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 18, 2020
विपक्ष में होने के बावजूद जितने गंभीर राहुल गांधी नज़र आ रहे हैं उतना शायद ही कोई बीजेपी का नेता आ रहा हो। सत्ताधारी पार्टी के मंत्री ज्यादातर प्रधानमंत्री के ट्वीट को रिट्वीट करने का ही काम करते हैं। वह अपने काम के प्रति कितने गंभीर हैं यह शायद वह स्वयं ही नहीं समझते हैं।
मोदी सरकार के बनने के बाद 2016 से 2020 के बीच असम चार बार भयंकर बाढ़ की चपेट में आया है। केवल 2018 ऐसा साल था जब यहाँ बाढ़ की स्थिति भयावह नहीं थी। बावजूद इसके सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए। यदि चार बार की बाढ़ से सबक लिया होता तो शायद आज असम के ज्यादातर लोग इतने प्रभावित नहीं हुए होते जितने हुए हैं।

यदि कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों में आवागमन के लिए एक सुरक्षित मार्ग बनाने पर ध्यान दिया जाए तो उससे जानवर बाढ़ के समय ऊंचाई पर जा सकेंगे और साथ ही लोगों के लिए भी सुविधा हो जाएगी। एक मार्ग से बहुत से फायदे हो सकते हैं लेकिन न तो अभी तक यहां कांग्रेस ही ज्यादा प्रयास कर पाई और न ही मोदी सरकार।
2019 में यदि सुप्रीम कोर्ट ने काजीरंगा नेशनल पार्क से बहने वाली नदियों के आस-पास हो रहे सभी प्रकार के खनन पर रोक न लगायी होती तो आज स्थिति और भी भयावह होती। यहां यह गौर करने वाली बात है कि रोक सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी सरकार ने नहीं। इससे पता चलता है कि सरकार कहीं-न-कहीं इस क्षेत्र को लेकर उदासीन रही है।
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