किसान की फसल बर्बाद हो चुकी है पुलिस में आकर

BY- Dr Ajay Kumar

इस तस्वीर में आप यह देखकर मेरे लेख के टाइटल को ये मत समझिए कि पुलिस जिस पति पत्नी को पीट रहे हैं वो एक किसान है जिनकी जमीन की फसल को प्रशासन ने जमीजोंद कर दिया है।

मैं किसान की फसल का उदाहरण यहां इन पुलिस वालों के लिए दे रहा हूँ। क्योंकि हमारे देश में 75%से ज्यादा जनता कृषि परोक्ष या अपरोक्ष रूप से खेती पर निर्भर है।

गांवों में गरीब मजदूरों के पास अगर खेती नही है तो वो दूसरे जमींदारों के खेत पर रबी व खरीफ की फसलों के मौसम में उनके खेत पर काम करके अपना जीवन यापन करते हैं या फिर किसी दूसरे किसान की जमीन को बांटिया स्कीम के तहत उसका खेत उधार लेकर उस पर खेती करते हैं।

जिन किसानो के पास थोड़ा रुपया है या नही भी है फिर भी वो अपने बच्चों को मेहनत करके पढ़ालिखा कर उन्हें पुलिस की नौकरी में भर्ती करवा देते हैं।

जहां तक मैं पुलिस विभाग में देखता हूँ तो किसानों के बेटे बेटियां सिपाही के पद पर आसीन होते हैं जो दिन-रात चौराहों पर, सर्दी गर्मी में, किसी नेता की सुरक्षा में, नागरिकों की सुरक्षा में खड़े रहते हैं।

सिपाहियों यानी कांस्टेबल स्तर पर भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के तहत इनका काफी शोषण होता है।

इन्हें अंग्रेजों के जमाने के हिसाब से तनख्वाह मिलती है, ड्यूटी का कोई निश्चित वक़्त नही होता है। इनकी तरक्की बहुत धीरे से होती है। जिससे यह अपने परिवार का अच्छे से पालन पोषण भी नही कर सकते।

ड्यूटी करने वाले सिपाही जिस जगह ड्यूटी करते हैं वहां न छांव होती न बाथरूम, जिस तरह से वह ड्यूटी करते वह एक किसान के बेटे बेटियां ही सहकर कर सकते हैं।

सिपाही की अपनी जरूरतें जब अपनी तनख्वाह से पूरी नही हो पाती तो पुलिस विभाग में दो तरह की रिश्वतखोरी जन्म लेती हैं। जिनमें सिपाही स्तर पर वह अपनी जरूरतें पूरी करने के लिये छोटी छोटी रिश्वतखोरी शुरू कर देता है और अधिकारी स्तर पर लोग अपने मनोरंजन के लिये रिश्वतखोरी करने लगते हैं।

सिपाहियों के जोर गरीब मजदूरों पर अत्याचार पर चलने लगता है लेकिन इनका वश अमीरजादों पर नहीं चलता है।

मेरे इस लेख का तात्पर्य यह है कि इन्ही गरीब किसान पुत्रों की वजह से गरीब मजदूर मजदूरों पर इनकी लाठी का डंडा चलता है। यह लोग भूल जाते हैं कि ये जिन गरीब किसानों पर डंडा चला रहे हैं वह भी उन्हीं की तरह किसान के बेटे हैं। लेकिन पूँजीतियो के इशारे पर यह काम कर जाते हैं लेकिन इनकी चेतना गरीबों के लिए मर जाती है।

मेरा पुलिस महकमे में काम करने वालों से अनुरोध है कि आप लोग क्यों गरीबों मजदूरों पर अत्याचार शुरू कर देते हैं? जबकि आप भी उन्हीं तरह एक गरीब परिवार से आते हैं।

आपकी संवेदनाएं कहाँ मर जाती हैं जो इनके भूखे पेट पर लात मारते हैं। आप लोग अंग्रेजों के शासन में नही है आप भारतीय संविधान के दायरे में सभी के लिए काम करने के लिए हो।

आप लोग अमीरों के आगे तो झुक जाते हो लेकिन गरीब किसानों के खेतों पर बुलडोजर चलवाकर उनकी रोजी रोटी को ध्वस्त कर देते हो। कितना विचलित करता है यह दृश्य!

क्यों किसानों की फसल रूपी सिपाही आपकी अंतरात्मा क्या आपसे सवाल नही करती जब आप इस तरह के अत्याचार करते हैं? जो यह साबित करती है कि आप पुलिस के नौकरी जॉइन करते ही अपने किसान मां बाप को भूल जाते हैं जिसके लिए यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी कि किसान की फसल बर्बाद हो चुकी है पुलिस में आकर

डॉ अजय

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