BY- VED PRAKASH
कोरोनावायरस महामारी ने पूरे देश में सबकुछ अस्त व्यस्त कर दिया पहले बंद पड़े संसाधनो की आवश्यकता आज आम जनमानस के लिए उपयोग का उपकरण बन चुकी है। पूरे देश में ई-पाठशाला के साथ ही कई अन्य कार्यों को भी अब इंटरनेट के जरिए ही रफ्तार दी जा रही।
ऑनलाइन शिक्षा की बात की जाए तो ऑनलाइन शिक्षा के जरिए अपने स्थान पर ही रहकर इंटरनेट व अन्य संचार उपकरणों की सहायता लेकर प्राप्त की जाने वाली शिक्षा से है। ऑनलाइन शिक्षा को विभिन्न रूपों में देखा जा सकता है जिसमें वेब आधारित शिक्षा, मोबाइल आधारित शिक्षा या कंप्यूटर आधारित शिक्षा और वर्चुअल क्लासरूम इत्यादि शामिल हैं।
ऑनलाइन शिक्षण का विचार कोई नया नहीं है और दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में भारत में इसका प्रयोग पहले से हो रहा है। तकनीकी शिक्षा के संस्थानों में भी इस विधा से शिक्षण कार्य होता आया है। लेकिन वृहद रूप से देखा जाए तो अभी हमारे शिक्षण संस्थानों में इसका चलन ना के बराबर है, लेकिन कोरोना महामारी के चलते ऑनलाइन शिक्षा का महत्व काफी ज्यादा बढ़ गया। कोरोना महामारी के चलते देश भर के सभी शैक्षणिक संस्थान बन्द है।
अभी तक कुछ गिने चुने छात्रों तक इसकी पहुंच रही है लेकिन मौजूदा हालात में सभी छात्रों को इस ऑनलाइन शिक्षा पद्धति में शामिल होना पड़ रहा है।
पठन-पाठन की इस ऑनलाइन शिक्षा से विद्यार्थियों के सामाजिक और स्वास्थ्य (शारीरिक व मानसिक) पर गंभीर विपरीत प्रभाव पड़ने की संभावनाएं है। ऑनलाइन शिक्षा से कक्षाएं लेने के लिए कई घंटे लगातार स्मार्टफोन से चिपके रहने के कारण स्मार्टफोन की किरणों से आंखों पर दुष्प्रभाव और अकेलेपन से बच्चों में चिड़चिड़ापन नजर आ रहा है।
भारत में सभी परिवारों तक इंटरनेट की पहुंच नहीं है यही वह वजह है जो ऑनलाइन शिक्षा जिससे दो भागों में बट गया है जिसमें एक तरफ अमीर वर्ग और दूसरी तरफ गरीब वर्ग है।
यूनिसेफ के आंकड़े के अनुसार ऑनलाइन शिक्षा पाने के लिए सिर्फ 24 फीसदी भारतीय घरों में इंटरनेट की सुविधा है। एनसीआरटी के मुताबिक़ भारत में 27 फ़ीसदी से ज़्यादा बच्चे, टीचर और घरवाले ऑनलाइन कक्षाएं लेने की प्रक्रिया में स्मार्टफ़ोन डिवाइस की कमी से जूझ रहे हैं। वहीं आईसीएआई के मुताबिक भारत की 130 करोड़ की आबादी में से क़रीब 45 करोड़ लोगों के पास ही स्मार्टफ़ोन है।
वहीं बात करें नेशनल सैंपल सर्वे के तो 2017-2018 के आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 42 फ़ीसदी शहरी और 15 फ़ीसदी ग्रामीण घरों में इंटरनेट की सुविधा है।
विभिन्न आंकड़ों को देखकर प्रश्न यह उठता है कि क्या ऑनलाइन उच्च शिक्षा देश के गरीब और ग्रामीण वर्ग के बीच असमानता की खाई को और बढ़ाएगी?
ग्रामीण और दूर दराज के आंचलों में रहने वाले विद्यार्थियों से संपर्क स्थापित करना और ऑनलाइन शिक्षण से उनका पाठ्यक्रम पूरा करना भी एक बड़ी समस्या है। ग्रामीण भारत में ऑनलाइन शिक्षा के लिहाज से दूसरी बड़ी चुनौती डिजिटल संस्कृति का अभाव भी है।
ग्रामीण भारत में शिक्षा का औपचारिक माध्यम स्थानीय भाषाएं हैं। ये बोलियां और भाषाएं शिक्षा के सम्प्रेषण और शिक्षण पद्वति का महत्वपूर्ण अंग होती हैं। लेकिन मोबाइल फोन और इंटरनेट के अन्य माध्यम अधिकांश रूप से अंग्रेजी भाषा के अनुकूल होते हैं जो गांवों में डिजिटल व्यवहार को प्रेरित नहीं करते। अगर ऑनलाइन शिक्षा को गांवों में सफल बनाना है तो स्थानीय भाषाओं से संचालित होने वाले डिजिटल माध्यमों के उपयोग को बढ़ावा देना होगा। इस तरह से ग्रामीण भारत में डिजिटल माध्यमों के प्रति कायम झिझक भी टूटेगी।
अनेक अध्ययनों में ये जाहिर हुआ है कि भारत की ग्रामीण आबादी डिजिटल रूप से अशिक्षित है। डिजिटल व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली भाषा को पढ़ने, लिखने, समझने और संप्रेषित करने तथा नई तकनीकों के प्रति अज्ञानता ऑनलाइन की राह में बाधा है।
जानकारों का मानना है कि भारत एक ऐसा देश है जहाँ जाति, धर्म और सामाजिक रसातल से निकलने का सिर्फ़ एक ही रास्ता है, वह है शिक्षा। मजबूरी की वजह से आये इस ऑनलाइन शिक्षा के दौर में ‘शिक्षा का अधिकार’ सिर्फ़ स्मार्टफ़ोन या लैपटॉप डिवाइस रखने वालों के पास सिमट कर रह गया है और जिनके पास डिज़िटल डिवाइस नहीं हैं, वो ऑनलाइन हुए स्कूलों से वंचित हो रहे हैं।
इसका मतलब ये कि आधी आबादी से ज़्यादा लोग बिना स्मार्टफ़ोन के हैं। कहीं-कहीं पाँच छह लोगों के परिवार में सिर्फ़ एक स्मार्टफ़ोन होता है। ऐसे में अगर एक घर में दो बच्चे हैं जिन्हें सुबह से लेकर दोपहर तक ऑनलाइन पढ़ाई करनी है, तो उन्हें दो फ़ोन चाहिए।
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में 26 करोड़ से अधिक लोग ग़रीबी रेखा के नीचे रहते हैं जो 200 रुपये प्रतिदिन से भी कम कमाते हैं।
आबादी का ज़्यादातर हिस्सा कृषि पर निर्भर है और मौसमी घटनाओं की वजह से हर साल आर्थिक मार झेलता है। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रतिमाह छह हज़ार कमाने वाला शख़्स हर महीने दो हज़ार रुपये अतिरिक्त इंटरनेट पर खर्च करेगा तो खाएगा क्या? हमारे देश मे इंटरनेट स्पीड भी बहुत बड़ी समस्या है।
ऐसे में सवाल है कि आगे की राह क्या हो? मौजूदा वक्त में भले ही ऑनलाइन शिक्षा पर हमारी निर्भरता की वजह कोरोना महामारी हो, लेकिन यह ऑनलाइन शिक्षा आदर्श तो नहीं है हालांकि, इससे शिक्षा के स्वरूप को सकारात्मक दिशा दी जा सकती है।
सबसे ज्यादा जरूरी है कि एक ऐसा समावेशी ढांचा बनाया जाय जिसमें ऑनलाइन शिक्षा पारम्परिक शिक्षा पद्धति का मखौल उड़ाती न लगे और न ही पारम्परिक शिक्षा ऑनलाइन शिक्षा के नवाचार को बाधित करे।
हमारे देश में अभी भी स्कूलों की संख्या कहीं न कहीं आबादी के हिसाब से कम है इसलिए हमें ऑनलाइन शिक्षा को वैकल्पिक और पूरक शिक्षा के रूप में देखना चाहिए। ऑनलाइन शिक्षा से ग्रामीणों को जोड़ने के लिए सबसे पहले इंटरनेट कनेक्टिविटी और बिजली की पहुंच पर विचार करना चाहिए।
भारत में ऑनलाइन शिक्षा एक विकल्प के रूप में हो सकती है लेकिन पारंपरिक शिक्षा पद्धति का स्थान नहीं ले सकती है।
(लेखक: वेद प्रकाश , डायट सुल्तानपुर से डीएलएड का प्रशिक्षण ले रहा हैं।)
ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन शिक्षा के लिए हमें इधर-उधर नेटवर्क तक पहुंच बनानी पड़ती है, नेटवर्क तो मिल जाता है लेकिन फिर बिजली की समस्या आती है जो ग्रामीण क्षेत्रों के ऑनलाइन शिक्षा को बाधित कर देती है।
–हर्षित पांडेय परास्नातक छात्र,बीबीएयू लखनऊ (सूचना प्राधोगिकी के अच्छे जानकार)
बेसिक शिक्षा में ऑनलाइन शिक्षा न के बराबर दी जा रही है, वजह सिर्फ स्मार्टफोन न होना। अगर अभिभावकों के पास स्मार्टफोन है भी तो उसमें इंटरनेट भरवाने के पैसे तक नहीं है। ऐसे में ग्रामीण अंचल में ऑनलाइन शिक्षा से 80 फ़ीसदी बच्चे वंचित हो रहें है।
–सत्यम मिश्र (प्रशिक्षु ,डायट सुल्तानपुर)