BY – FIRE TIMES TEAM
सीएए विरोधी प्रदर्शनों में शामिल जामिया मिलिया इस्लामिया की पीएचडी छात्रा और जामिया समन्वय समिति की सदस्य सफूरा जरगर की हिरासत का मामला अब अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी छाने लगा है। सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स, अमेरिकन बार एसोसिशन ने सफूरा जरगर की कैद को अंतराष्ट्रीय कानूनों के मानक के खिलाफ बताया है। और जरगर को रिहा करने की अपील की है।
लाइव लॉ डॉट इन के मुताबिक, “अंतराष्ट्रीय कानून, जिनमें वो संधियां भी शामिल हैं, भारत जिनमें स्टेट पार्टी है, केवल संकीर्ण परिस्थियों में प्री-ट्रायल कस्टडी की अनुमति देता है, सुश्री जरगर का मामला ऐसा है ही नहीं, इंटरनेशनल कोवनेंट आफ सिविल एंड पोलिटिकल राइट्स (ICCPR) कहता है कि यह सामान्य नियम नहीं होना चाहिए कि ट्रायल का इंतजार कर रहे व्यक्तियों को हिरासत मे रखा जायेगा।”
क्या है मामला –
27 वर्षीय सफूरा जरगर सीएए विरोधी प्रदर्शनों में दिसंबर 2019 से ज्यादा सक्रिय रहीं थी। उन पर कथित रूप से दिल्ली दंगों से पहले विरोध प्रदर्शन के दौरान सड़क जाम करने का आरोप लगाया गया है। और इसी के बाद 10 अप्रैल को सफूरा को गिरफ्तार किया गया था। उस समय वह करीब 3 माह की गर्भवती थीं। उनकी गर्भावस्था , स्वास्थ्य की स्थिति और कोरोना के कारण जेल में भीड़ को कम करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर मजिस्ट्रेट ने उन्हें जमानत दे दी थी। दिल्ली पुलिस ने उन्हें दोबारा दिल्ली दंगो की साजिश में शामिल होने के आरोप में गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1967 के तहत गिरफ्तार कर लिया।
सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स के अनुसार, “सुश्री जरगर के खिलाफ दर्ज एफआईआर, जिनमें उन्हें हिंसा के कृत्यों में जोड़ा गया है, में सुबूतों की कमी को देखते हुए यह स्पष्ट नहीं है कि इस मामले में अदालत ने प्री-ट्रायल डिटेंशन के विकल्पों पर विचार क्यों नहीं किया।”
ICCPR के अनुसार प्री-ट्रायल डिटेन्शन का प्रयोग सिर्फ संकीर्ण उद्देश्यों के लिए होता है। इन उद्देश्यों में देश छोड़ने से रोकना, सबूत के साथ छेड़खानी से रोकना, या फिर से अपराध दोहराने की आशंका हो शामिल है। सेंटर ने सफूरा के गर्भावस्था और कोरोनावायरस और उनकी स्वास्थ्य स्थिति को देखकर कहा कि जहां तक संभव हो गर्भवती महिलाओं के लिए नॉन-कस्टोडियल नियमों को प्राथमिकता देना चाहिए।