इस बात का इंतज़ार किया ही जा रहा था कि यूपी में प्रधानमंत्री की चुनावी सभाएं शुरु हो चुकी हैं और आयकर विभाग का चुनावी छापा शुरू नहीं हुआ है। इससे एक बार फिर साबित हुआ है कि आयकर विभाग भाजपा के लिए कितना ज़रूरी है।
जब हर चुनाव में आयकर विभाग को केवल विरोधी दलों के नेताओं के यहां छापे ही मारने हैं तो क्यों न आयकर विभाग का विलय भाजपा में कर दिया जाए। नए विभाग के संक्षिप्त नाम पर विचार विमर्श किया जा सकता है। आय और भाजपा और कर मिलाकर कुछ नए नाम मैंने सोचे हैं।
तत्काल आप आयकर विभाग का नाम बदल कर भाजायकर विभाग कर सकते हैं। भाजपाकर विभाग भी चल सकता। इससे एक और लाभ होगा। हर ज़िले में आयकर विभाग का दफ्तर है। वो दफ्तर भी भाजपा कार्यकर्ताओं के काम आ सकेगा और आपको अलग से पार्टी आफिस खोलने की ज़रूरत नहीं होगी।
बंगाल और तमिलनाडु के विधानसभा चुनावों के समय भी आयकर विभाग और प्रत्यर्पण निदेशालय ED ने छापे मारने शुरू कर दिए थे। मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बेटी दामाद के यहां छापे पड़े थे। तब भी स्टालिन जीत गए।
तृणमूल कांग्रेस के नेता शताब्दी रॉय और कुणाल घोष के यहां छापे पड़े थे तब भी ममता जीत गईं। कोयला घोटाले से जुड़े एक अन्य मामले में ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी की पत्नी से सीबीआई पूछताछ करने लगी। अभिषेक बनर्जी के रिश्तेदारों के यहां भी छापे पड़ने लगे। ऐसे कई उदाहरण है।
2019 के सितंबर में महाराष्ट्र चुनाव में एन सी पी नेता शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के खिलाफ ED ने केस दर्ज किया। उस मामले में क्या हुआ आपको पता ही है। आपकी पार्टी ने अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री का पद दिया लेकिन वे केस माफ कराने के बाद वापस अपनी पार्टी में चले गए।
शरद पवार ने ED को इस तरह से चुनौती दी कि वह पीछे हट गई। इसी तरह कर्नाटक में जब विधान सभा चुनाव शुरू हुए तो कांग्रेस नेता डी के शिवकुमार के यहां छापे पड़ने लगे। राज्यों के हिसाब से यह सूची बहुत लंबी है।
अगर इसी तरह से आयकर विभाग और अन्य जांच एजेंसियां चुनावी राज्यों में विपक्षी दलों के यहां छापे मारेंगी तो जनता के बीच इनकी साख खराब हो जाएगी। पुलिस के ज़रिए दिल्ली में किसान आंदोलन में दहशत पैदा करने की कोशिश की गई।
किसानों ने पुलिस के भय को नकार दिया। वो समझ गए कि मामला दर्ज कर डराया जा रहा है। किसानों ने आंदोलन किया और जब समाप्त हुआ तो केस वापस भी कराए। चुनावी राज्यों में आयकर विभाग का इस तरह से छापे मारने इस विभाग का राजनीतिकरण करना है। जो अब पूरा हो चुका है।
ऐसा नहीं है कि भाजपा इस मामले में ईमानदार है। क्या आयकर विभाग, सीबीआई, ED को कहीं भी भाजपा नेता या उसके करीबी नहीं मिलते हैं जिसके पास कालाधन है? आय से अधिक धन है? क्या जनता देख नहीं रही है कि इतना ख़र्चीला चुनाव बीजेपी किस पैसे से लड़ रही है?
बीजेपी का आम कार्यकर्ता भी इस सच्चाई को देख रहा होगा। भले ही वह अपनी पार्टी के प्रति निष्ठा रखता है और चुप रहता है लेकिन वह देख तो रहा ही है न कि कहां से इतना पैसा आ रहा है। वह कब तक इतना झूठ अपने भीतर संभालेगा। एकदिन बीजेपी का कार्यकर्ता इस झूठ से फट जाएगा।
अगर किसी को को लगता है कि कानून अपना काम कर रहा है, एजेंसियां काला धन का पता लगा रही हैं तो वे बहुत भोले हैं। संसद के इसी सत्र में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्य सभा में लिखित जवाब में कहा है कि इस बात का कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है कि पिछले पांच वर्षों में विदेशों में कितना काला धन पड़ा है। हैं न कमाल।
इन्हें अनुमान तक पता नहीं नहीं है। सरकार जानना भी नहीं चाहती है। जबकि यही सरकार कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खर्गे के एक प्रश्न के जवाब में कहती है कि पनामा पेपर्स और पैराडाइज़ पेपर्स के संबंध में 20,353 करोड़ की अघोषित राशि का पता चला है जिसे लेकर जांच हो रही है। कुछ मामले भी दर्ज हुए हैं। अभी तक 153 करोड़ टैक्स ही वसूला जा सका है।
आपको बता दें कि पनामा पेपर्स और पैराडाइज़ पेपर्स के तहत विदेशों में कालाधन रखने के मामले सरकार ने नहीं पकड़े थे। सरकार की किसी जांच एजेंसी ने नहीं पकड़ी थी बल्कि दुनिया भर के पत्रकारों ने मिलकर पकड़ा था। जिसे इंडियन एक्सप्रेस में कई दिनों तक छापा गया था। पत्रकारों ने मजबूर किया था कि अब इन्हें पकड़ कर दिखाइये। इतना पैसा बाहर जा रहा था और सरकार को पता तक नहीं था।
इसी तरह चंदे का धंधा भी समझना होगा। पत्रकार नितिन सेठी ने हफिंगटन पोस्ट के लिए चुनावी चंदे पर कई रिपोर्ट छापी है। आप खोज कर इसे पढ़ें तो पता चलेगा कि किस तरह जनता के साथ धोखा किया गया है। यह मामला सुप्रीम कोर्टं हैं और लंबे समय से सुनवाई का इंतज़ार कर रहा है। फैसला तो दूर की बात है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इलेक्टोरल बान्ड को लेकर सरकार संसद और जनता के बीच कई तरह के झूठ बोले हैं। आज उसी का नतीजा है कि बीजेपी के पास चंदे के रुप में तीन तीन हज़ार करोड़ रुपये हैं। जो चंदा मिल रहा है उसका 75 से 90 फीसदी हिस्सा बीजेपी को मिलता है। कानून के नाम पर यह सरकारी घोटाला है जिसे आज नहीं तो कल इस देश की जनता समझेगी ही।
आज बीजेपी कई हज़ार करोड़ की पार्टी है। इसके कार्यकर्ता ही नहीं जानते होंगे कि इतना पैसा कहां से आ रहा है और कहां ख़र्च हो रहा है। कोरोना के समय बीजेपी के कितने ग़रीब कार्यकर्ता और साधारण नेता मर गए।
बीजेपी को हज़ारों करोड़ रुपये के ख़ज़ाने से इन नेताओं को पांच पांच लाख रुपये की मदद दी जानी चाहिए थी। बीजेपी के पास इतना पैसा है कि वह सबको मदद दे सकती थी मगर एक पैसा नहीं दिया गया।
बीजेपी के कार्यकर्ताओं के लिए भी मुझी को मांग करनी पड़ रही है। उसका साधारण कार्यकर्ता अपनी पार्टी की चुनौवी रैलियों की भव्यता देखकर चुप है। वह भी इंसान है। सही गलत पहचानता होगा। भले वह नहीं बोल पाएगा लेकिन नोट तो कर ही रहा है। राष्ट्र राष्ट्र करते करते एक दिन वह अपने भीतर के झूठ से फट जाएगा।
बीजेपी का कार्यकर्ता धर्म का वाहक बताता है। कभी तो वह धर्म का मतलब समझेगा कि इसका रास्ता सत्य और करुणा का है। जिस दिन उसका सामना सत्य से होगा उस दिन बीजेपी का कार्यकर्ता उस झूठ के कारण फट जाएगा जिसे नरेंद्र मोदी ने दिन रात उसके भीतर भरा है। वो दिन आएगा लेकिन चुनावी राज्यों में आयकर विभाग भी आता रहेगा। विरोधी दलों के घर दफ्तरों में।
आयकर और अन्य जांच एजेंसियों के ज़रिए विपक्ष के नेताओं के यहां छापे मारना चिन्ता की बात है। इनके इस्तमाल से इन दलों के कार्यकर्ताओं को डराया जा रहा है और मार्केट में संदेश दिया जा रहा है कि कोई इन्हें चंदा देने की ग़लती न करें। इस हथकंडे से अभी तक विपक्ष खत्म तो नहीं हुआ है मगर कमज़ोर तो हुआ ही है।
ये और बात है कि इसके बाद भी NCP, TMC, DMK ने आयकर विभाग से लैस भाजपा को हराया है क्योंकि इनके नेता और कार्यकर्ता लड़ गए। अपने आप को लड़ाई में झोंक दिया और वे जीत गए। अखिलेश के नेताओं के यहां छापे माकर आयकर विभाग ने आधिकारिक घोषणा कर दी है कि भाजपा किससे हार रही है।
55 कैमरों के बीच मंदिर दर्शन करने के बाद भी लगता है कि यूपी की फिज़ा भाजपा की तरफ नहीं बदली है, अब अगर आयकर विभाग नहीं बदल पाता है तो इस विभाग को भंग कर देना चाहिए। अगले चुनाव के लिए एक नया विभाग बने जो विपक्ष के नेता से लेकर कार्यकर्ता तक को चुनाव खत्म होने तक एक गोदाम में बंद कर दे और अकेले लड़ते हुए भाजपा हर चुनाव जीत जाए। यह लेख प्रो-बीजेपी है। अगर आई टी सेल के लोग इसे वायरल करें तो मुझे बहुत दुख होगा।
रवीश कुमार के फेसबुक पेज से साभार