BY- FIRE TIMES TEAM
“मेरा जन्म मेरी घातक दुर्घटना है” रोहित वेमुला द्वारा 17 जनवरी, 2016 को लिखे गए ये अंतिम शब्द थे, इसके बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। रोहित हैदराबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र थे और वे एक विज्ञान लेखक बनना चाहते थे लेकिन, वंचित समुदाय के छात्रों के ऊपर किये जाने वाले संस्थागत अत्याचारों के कारण व अपने सपने को पूरा नहीं कर सके।
दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले रोहित वेमुला का शैक्षणिक संस्थान में कार्यकाल उथल-पुथल से कम नहीं था। भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने वेमुला और चार अन्य छात्रों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद उन्हें विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया गया था। ₹25000 की उनकी रिसर्च फेलोशिप भी बंद कर दी गई थी।
छह साल बाद, रोहित वेमुला की मौत अभी भी असहज सवाल उठाती है। देश भर के छात्र उन्हें एक प्रेरणा के रूप में देखते हैं जो अंतिम सांस तक लड़ना चाहते थे, लेकिन भारतीय समाज की जाति व्यवस्था उनके लिए एक अभिशाप बन गई।
किसी भी अन्य युवा की तरह, रोहित वेमुला के भी महत्वाकांक्षी सपने और इच्छाएं थीं। उनके दोस्त अक्सर उन्हें मेहनती और दयालु व्यक्ति बताते थे। अपनी जातिगत गतिशीलता से भली-भांति परिचित होने के कारण, कठोर जाति व्यवस्था में गहरी जड़ें जमा चुकी भारतीय संस्थाओं में अपनी पहचान बनाना उनके लिए कभी भी आसान नहीं था।
वेमुला के लिए रिसर्च स्कॉलर के दिनों को पार करना आसान नहीं था। उन्हें हर स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ा, लेकिन इसने उन्हें भेदभावपूर्ण व्यवहार के खिलाफ लड़ने से नहीं रोका। उन पर एबीवीपी के एक साथी छात्र के खिलाफ हिंसक व्यवहार का आरोप लगाया गया था। जबकि हर स्तर पर आरोप का खंडन किया गया था, विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने कार्रवाई की और उन्हें होस्टल से निष्कासित कर दिया।
रोहित वेमुला अम्बेडकर छात्र संघ का हिस्सा थे, जिसने कॉलेज परिसरों में दलित अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। अम्बेडकर छात्र संघ का एक सक्रिय हिस्सा होने के नाते, रोहित वेमुला ने अपनी पहचान बनाई और निचली जाति के छात्रों को मुख्यधारा की कॉलेज राजनीति में शामिल करने में काफी योगदान दिया।
ऐसे ही एक छात्रा डॉ पायल तडवी ने भी अपनी साथी छात्राओं से परेशान होकर आत्महत्या कर ली थी लेकिन उन्हें भी आजतक न्याय नहीं मिला।
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