भारत में इंजीनियरिंग करने वाले छात्रों की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है। 2010 के बाद नए कॉलेज काफी बड़ी मात्रा में खुले। बड़े शहरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों में कॉलेजों की भरमार हो गई।
स्थिति ऐसी हो गई कि कहीं भी कॉलेज क्यों न खुला हो सीटें खाली नहीं रहती हैं। हालांकि 2018 के बाद इसमें कुछ गिरावट देखी गई लेकिन फिर भी इंजीनियरिंग छात्रों और कॉलेजों की अभी भी भरमार है।
अब सवाल यह है कि यदि इतनी बड़ी संख्या में छात्र इंजीनियरिंग को चुन रहे हैं तब क्या उनका भविष्य भी संवर रहा है या नहीं। इंजीनियरिंग कॉलेज का कारोबार तो खूब फल फूल रहा है लेकिन छात्रों का क्या?
एक सर्वे के मुताबिक इंजीनियरिंग करने के बाद काफी बड़ी मात्रा में छात्र दूसरे पेसे में नौकरी करने लगते हैं या अपना खुद का व्यापार। कुल मिलाकर अल्पमत में छात्र हैं जो इंजीनियरिंग करने के बाद इसी पेसे से जुड़ते हैं।
एक अन्य सर्वे के मुताबिक इंजीनियरिंग करने के बाद 80% छात्र बेरोजगारी जैसी समस्या से जूझते हैं। उनको न नौकरी मिल पाती है और न ही कोई व्यापार शुरू कर पाते हैं।
लाखों रुपए इंजीनियरिंग की पढ़ाई में खर्च करने के बाद नौकरी न मिलना छात्रों को अवसाद में डाल देता है और फिर यह आत्महत्या की वजह बन जाता है। यही कारण है कि भारत में छात्र आत्महत्या की दर काफी ज्यादा है।
इंजीनियरिंग के छात्रों की सबसे बड़ी समस्या उनका रुचि के बिना इस क्षेत्र में आना भी है। सामाजिक व्यवस्था के कारण भी कई छात्र इंजीनियरिंग पेसे को चुन लेते हैं लेकिन उनको रुचि नहीं होती है।
40% छात्र इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान इंटर्नशिप तक नहीं करते। वह उस क़्वालिटी में खरे नहीं उतरते जो उनसे उम्मीद की जाती है। 60% लोग रट के पास हो जाते हैं जो कि पाठ्यक्रम की खामी के कारण होता है।
जिन छात्रों को पहले नौकरी मिल भी जाती थी उनकी स्थिति कोरोना संकट के बाद और भयावह हो गई है। अब लॉकडाउन के बाद एक तो नौकरी मिल नहीं और जिनको मिल गई थी उनकी भी जा रही है।