चार साल में 430000000000 रुपये अपने प्रचार पर खर्च करने वाली मोदी सरकार अब कर्मचारियों का भत्ता काट रही है


BY- FIRE TIMES TEAM


नरेंद्र मोदी सरकार ने मई 2014 में सत्ता में आने के बाद से अपने प्रचार पर 4,343 करोड़ खर्च किए हैं, सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एक एजेंसी ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जवाब में ये बताया था।

यह डाटा 2019 के चुनाव से पहले का। दरअसल 2019 के चुनाव में और फिर राज्यों के चुनाव में भी काफी पैसा खर्चा किया गया।

केंद्र सरकार की एजेंसी ने 2018 में आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली द्वारा दायर आवेदन के जवाब में कहा कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विज्ञापनों और बाहरी प्रचार पर खर्च किया गया था।

मंत्रालय ने कहा कि सरकार ने मीडिया प्लेटफार्मों पर अपने कार्यक्रमों के विज्ञापन पर 4,343.26 करोड़ खर्च किए।

जून 2014 से मार्च 2015 तक सरकार ने प्रिंट प्रचार में 424.85 करोड़ रुपये, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर 448.97 करोड़ रुपये और आउटडोर प्रचार पर 79.72 करोड़ रुपये खर्च किए, जो कुल 953.54 करोड़ रुपये थे।

अगले वित्तीय वर्ष 2015-16 में, सभी मीडिया के लिए खर्च बढ़ गया। इनमें प्रिंट मीडिया पर 510.69 करोड़ रुपये, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर 541.99 करोड़ रुपये और आउटडोर प्रचार पर 118.43 करोड़ रुपये खर्च किये गए। जो कुल 1,171.11 करोड़ रुपये हैं।

2016-17 में, प्रिंट माध्यम पर किया गया व्यय घटकर (पहले वर्ष जून 2014-मार्च 2015 की तुलना में अधिक) 463.38 करोड़ रुपये हो गया, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के लिए यह पिछले वर्ष की तुलना में बढ़कर 613.78 करोड़ रुपये हो गया। इस साल आउटडोर प्रचार पर भी खर्च बढ़कर 185.99 करोड़ रुपये हो गया जो कुल 1,263.15 करोड़ रुपये हो गया।

अप्रैल 2017 से मार्च 2018 में, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर पिछले वर्ष के मुकाबले 475.13 करोड़ रुपये और आउटडोर प्रचार खर्चों में 147.10 करोड़ रुपये की भारी गिरावट आई।

इतना ही नहीं भारतीय जनता पार्टी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव अन्य पार्टियों से कई गुना ज्यादा पैसा खर्चा किया। एक अनुमान के मुताबिक करीब 27000 करोड़ रुपये इस चुनाव में बीजेपी ने खर्च किये।

वर्तमान में जब कोरोना का संकट बना हुआ है तब सरकार कर्मचारियों के भत्ते समेत कई खर्चे कम कर रही है। अब सवाल सरकार से होना चाहिए कि जब वह करोडों रुपये अपने प्रचार में खर्च करती है तब उसे इन कर्मचारियों के जीवन को लेकर कोई फिक्र क्यों नहीं रहती है?

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