कोरोना को लेकर गिरोह ने सांप्रदायिकता का जो जहर फैलाया, केरल में उसका कोई असर नहीं पड़ा?


BY: संजय पराते


कल लॉकडाउन के पहले चरण का आखिरी दिन है और इसके बाद दूसरा चरण शुरू हो जाएगा। 21 दिनों की तालाबंदी में संघी गिरोह ने खूब थाली-घंटे बजवाये, खूब मोमबत्ती-टॉर्च जलवाए, लेकिन कोरोना का हमला थमने का बजाए बढ़ता ही गया है।

कल दस बजे जब जिल्ले इलाही संबोधित कर रहे होंगे, तो कोरोना संक्रमितों की संख्या दस हजार छू रही होगी और इस महामारी से मरने वालों की संख्या तो 300 पार कर ही चुकी है।

लेकिन वे यह नहीं बताएंगे कि उनकी वैदिक ग्रंथों से खोजकर निकाली गई वैदिक दवाई इस महामारी को फैलने से क्यों नहीं रोक पाई?

वे यह भी नहीं बताएंगे कि इस महामारी का इलाज चिकित्सा विज्ञान से ही संभव है, क्योंकि तब उन्हें बताना पड़ेगा कि हमारे देश में कितने टेस्टिंग किट, कितने वेंटिलेटर्स, कितने पीपीई, कितने मास्क, कितने दस्ताने, कितनी दवाईयां उपलब्ध हैं। आगे और कितने की जरूरत पड़ेगी, इनका इंतज़ाम कैसे होगा?

कल की ही रिपोर्ट है। पूरे देश में अभी तक केवल 186906 सैंपल टेस्ट ही किये गए हैं, औसत प्रतिदिन 15747 टेस्ट। यानी 135 करोड़ की आबादी वाले देश में 7223 लोगों के बीच एक टेस्ट किया जा रहा है।

आम जनता के नाक पर मास्क और हाथों में दस्ताने तो हैं ही नहीं, जो चिकित्सक मरीजों की सेवा में जुटे हैं, उनके पास भी बचाव-परिधान नहीं हैं। एक-डेढ़ माह बाद जब इसकी उपलब्धता होगी, तब तक न जाने कितने मरीज और डॉक्टर्स अपनी जान गंवा चुके होंगे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले ही चेतावनी जारी कर दी है कि यदि सरकार अब भी नहीं चेती और उसने स्वास्थ्य व्यवस्था को बहाल नहीं किया, तो यह महामारी भारत मे 30000 लोगों की बलि लेगी। लेकिन इससे कहीं ज्यादा लोग भूख से भी मरेंगे। यह हमारे देश की निराशाजनक तस्वीर है।

इसके उलट एक तस्वीर केरल की है जो इस महामारी को पटकनी देता नजर आ रहा है।

यही वह राज्य है, जहां इस महामारी ने सबसे पहले दस्तक दी थी। इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने की संभावना भी केरल की ही थी, क्योंकि पूरी दुनिया से ही यहां आमद-रफ्त बनी रहती है।

लेकिन कल जहां केवल दो संदिग्ध मरीज मिले, वहीं 36 मरीज ठीक होकर हॉस्पिटल से भी बाहर आये हैं और इन्हें मिलाकर कुल 194 पॉजिटिव मरीजों में से 179 ठीक हो चुके हैं। बचे 15 मरीजों को बेहतरीन चिकित्सा सुविधाएं मिल रही हैं।

यदि कोई इसे चमत्कार माने, तो यह चमत्कार इसीलिए संभव हुआ कि केरल में एक बेहतरीन जन स्वास्थ्य प्रणाली वहां की सरकार के संरक्षण में पहले से ही मौजूद है और आम जनता निजी अस्पतालों के भरोसे नहीं है।

इस जन स्वास्थ्य प्रणाली के बल पर ही यह संभव हुआ कि मात्र 3.48 करोड़ की आबादी वाले केरल में 14989 सैंपल टेस्ट लिए गए, हर 2322 लोगों पर एक टेस्ट। इतने सघन टेस्टों से संक्रमितों को तुरंत पहचानने और उनका सही इलाज करने में मदद मिली।

इसके साथ ही, लॉकडाउन के दौरान केरल सरकार ने न केवल अपने नागरिकों को पाला-पोसा, बल्कि दूसरे राज्यों के प्रवासी मजदूरों को अतिथि मानकर उनकी जो हिफाजत की है, उसकी पूरे देश में प्रशंसा हो रही है।

केरल में एक बहुत बड़ी आबादी मुस्लिमों की है, लेकिन इस बीमारी के नाम पर पूरे देश मे संघी गिरोह ने सांप्रदायिकता का जहर फैलाया, केरल में उसका कोई असर नहीं पड़ा।

वहां कोरोना वायरस, कोरोना वायरस ही बना रहा, न चाईना वायरस में बदला और न मुस्लिम/तब्लीगी वायरस में। केरल की सरकार और जनता दोनों मिलकर इस महामारी से चिकित्सा विज्ञान और वैज्ञानिक जागरूकता के सहारे ही लड़ रही है, न कि टोनों-टोटकों और प्रतीकों से।

और इधर छत्तीसगढ़ में?

अभी तक छत्तीसगढ़ का एक बड़ा भूभाग कोरोना संक्रमण से मुक्त है। लेकिन कल जिस तरह से कोरोना-पॉजिटिव मरीजों की संख्या में उछाल आया है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में इस महामारी का हमला बढ़ने जा रहा है।

कांग्रेस सरकार “कोरोना मुक्त प्रदेश” का जो नारा उछालने जा रही थी, एक ही झटके में वह धराशायी हो गया। लेकिन यह बहुत साफ है कि इस महामारी से लड़ने की सरकार की तैयारियां बहुत ही अपर्याप्त है और टेस्ट किटों का तो नितांत अभाव है। यह भी एक कारण है कि इस बीमारी से ग्रसित लोग पकड़ में नहीं आ रहे हैं।

प्रदेश में 77000 से ज्यादा लोग होम क्वारंटाइन है। अभी तक सरकार ने केवल 4000 (और ठीक-ठीक कहें तो 3858) सैंपल टेस्ट किये हैं, औसतन 6400 की जनसंख्या पर एक टेस्ट और औसतन 135 टेस्ट रोज की रफ्तार से।

टेस्ट लैब और प्रशिक्षित चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ाये बिना इस रफ्तार को बढ़ाया नहीं जा सकता। कटघोरा के जिस वार्ड से संक्रमित मरीज मिल रहे हैं, उस वार्ड की जनसंख्या लगभग 3000 है और इन सभी लोगों के सैंपल टेस्ट करने में ही 10 दिन लग जाएंगे। तब तक कोरोना कहीं और घूमने चला जायेगा।

कोरोना से लड़ने के लिए केंद्र सरकार से राज्य को कोई अतिरिक्त मदद मिलने से रही। लेकिन राज्य सरकार का रिकॉर्ड भी आम जनता में सरकार के प्रति कोई विश्वास नहीं जगाता। जो सरकार कोरोना से लड़ने के लिए निजी अस्पतालों के अधिग्रहण की अधिसूचना एक-दो घंटे के अंदर ही लिपिकीय त्रुटि बताकर वापस ले लें, उसके अस्पताल माफिया के साथ संबंध बिना कुछ कहे ही जाहिर हो जाते हैं।

अब सरकार के पास टेस्ट किटों का अभाव है और इसके लिए जो शॉर्ट-टर्म टेंडर जारी हुआ था, वह भी रद्द हो चुका है। बताया जा रहा है कि आपूर्तिकर्ता ने किटों की आपूर्ति में असमर्थता व्यक्त की है।

खोजी पत्रकारों को इस बात की खोज करनी चाहिए कि कहीं ये किट अमेरिका तो नहीं चले गए। लेकिन अब टेंडर की प्रक्रिया सरकार को दुबारा शुरू करनी होगी और किटों की पहली खेप मई अंत तक ही मिल पाएगी, यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो तब तक सब कुछ भगवान भरोसे ही चलेगा।

प्रदेश में इस महामारी से लड़ने में सबसे बड़ी रुकावट इसका दिल्ली में तबलीगियों के जमावड़े को लेकर किया जा रहा सांप्रदायिकरण है और कांग्रेस सरकार तबलीगी जमात के साथ जोड़कर कोरोना-संदिग्धों के जिस प्रकार आंकड़ें पेश कर रही है, उसने संघी गिरोह द्वारा फैलाये/किये जा रहे दुष्प्रचार को मजबूत करने का ही काम किया है।

ताली-थाली और दीया-मोमबत्ती के राजनैतिक अभियान के बरक्स कांग्रेस की चुप्पी ने आम जनता में इस महामारी के खिलाफ वैज्ञानिक जागरूकता पैदा करने की जगह संघ-प्रचारित अंधविश्वास को ही पुष्ट किया है।

लॉकडाउन के कारण आर्थिक रूप से बदहाल और बर्बाद होती जनता के लिए रस्म-अदायगी को छोड़कर उसने कुछ नहीं किया, वह एक अलग मुद्दा तो है ही। साफ है कि आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ में कोरोना की महामारी और बढ़ने ही वाली है।


लेखक वामपंथी कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष हैं। लेख में दिए गए उनके निजी विचार हैं। (sanjay.parate66@gmail.com)


 

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