जल प्रदूषण को कंट्रोल न कर पाने पर उत्तर प्रदेश पर लगा 120 करोड़ का जुर्माना

BY- FIRE TIMES TEAM

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार पर गीले और सूखे कचरे के गलत प्रबंधन के लिए पर्यावरणीय मुआवजे (एनवायरनमेंटल कम्पेंसेशन) के रूप में 120 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है।

न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रदेश सरकार गोरखपुर और उसके आसपास नालों, नदियों और अन्य जल निकायों में प्रतिदिन कम से कम 55 मिलियन लीटर अनुपचारित (अनट्रीटेड) सीवेज को डालने के लिए जिम्मेदार है।

पीठ गोरखपुर जिले और उसके आसपास के क्षेत्रों में अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक कचरे के कारण जल निकायों और भूजल के दूषित होने के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

30 मार्च को पिछली सुनवाई में, न्यायाधिकरण ने जल प्रदूषण को नियंत्रित करने में अधिकारियों की ओर से गंभीर विफलता का उल्लेख किया था।

ट्रिब्यूनल ने गुरुवार को कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार हर दिन 2 करोड़ रुपये प्रति मिलियन लीटर की दर से नदियों में पानी छोड़ने के लिए जिम्मेदार है, जो कि 110 करोड़ रुपये तक है। ठोस कचरे को संसाधित (ट्रीट) करने में विफल रहने के लिए सरकार पर एक और 10 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है।

न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल और अफरोज अहमद की बेंच ने कहा, “राज्य की ओर से दायर रिपोर्ट से, यह स्पष्ट नहीं है कि कितने उद्योगों के लिए एक कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट की योजना बनाई गई है और पानी की गुणवत्ता जैव-उपचार कार्य के बाद सकारात्मक परिणाम नहीं दिखाती है।”

न्यायाधिकरण ने प्रदेश सरकार को एक महीने के भीतर राशि जमा करने का निर्देश दिया है। बेंच ने सरकार को छह महीने के भीतर मानदंडों को पूरा करने के लिए योजना बनाने और उपचारात्मक उपायों को लागू करने के लिए छह सदस्यीय संयुक्त समिति का गठन करने का भी निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर और मुआवजा लगाया जा सकता है।

बेंच ने आगे काह, “कदमों में सीईटीपी (कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स) का संचालन, संबंधित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों के लिए नालियों का अवरोधन और डायवर्जन, नदियों के बाढ़ क्षेत्रों को बनाए रखना, झीलों और रामगढ़ ताल, अतिक्रमण को रोकना, वृक्षारोपण सुनिश्चित करना, गाद निकालना, ताल और अन्य संबनधित गतिविधियाँ शामिल होंगी।”

पीठ ने कहा कि केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड संयुक्त रूप से कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स को चालू करने और उपयोग करने की जांच कर सकते हैं और साथ ही सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स के प्रदर्शन का मूल्यांकन या जाँच भी कर सकते हैं।

इसमें कहा गया है, “इस ट्रिब्यूनल के रजिस्ट्रार जनरल के पास छह महीने के भीतर कार्रवाई की रिपोर्ट दर्ज की जा सकती है …”।

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