BY- FIRE TIMES TEAM
प्रधानमंत्री द्वारा देशव्यापी लॉक डाउन की घोषणा किये जाने के बाद बहुत से मजदूर दूसरे प्रदेशों में फंस गए जो इस कोरोना संकट की घड़ी में अपने घर वापस न जा सके क्योंकि ट्रेन और बस सेवा भी बंद है।
दूसरे प्रदेशों में फंसे प्रवासी मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या उनके खाने-पीने की है, जैसा कि बहुत से टीवी चैनल के माध्यम से दिखाया भी गया।
ऐसा इसलिए क्योंकि अब उनके पास कोई रोजगार नहीं है, सभी कारखाने बंद पड़े हैं, कोई आर्थिक स्रोत न होने की वजह से उन्हें पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा।
देशभर में कई प्रदेशों से कई किलोमीटर का पैदल सफर तय करने को मजबूर हो रहे प्रवासी मजदूरों को काफी दिक्कतों का सामना पड रहा है क्योंकि ऐसे में कहीं भूख, कहीं प्यास, बढ़ती गर्मी और कभी पुलिसवालो से सामना करना पड़ता है।
हजारों किलोमीटर पैदल चलने की वजह से कई लोगों की जान तक जा चुकी है, ऐसा ही ताजा मामला सामने आया है जिसमें मात्र एक 12 साल की बच्ची की जान चली गई।
तेलंगाना के एक गांव से छत्तीसगढ़ की करीब 150 किलोमीटर की पैदल यात्रा पर घर जाने वाली एक 12 साल की लड़की की मौत हो गई और बीजापुर जिले में उसकी मंजिल से महज एक घंटे की दूरी पर मौत हो गई।
लगातार तीन दिन तक जंगल के रास्ते किसी प्रकार से इन लोगों ने करीब 100 किमी का सफर तय किया। इसके बाद ये लोग बीजापुर के मोदकपाल इलाके में पहुंचे थे। जहाँ बच्ची ने दम तोड़ा वहां से उसका घर मात्र 14 किमी की दूरी पर था।
बताया जा रहा है कि ये मजदूर परिवार तेलंगाना में एक मिर्च के खेत में काम करते थे।
बीजापुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी बीआर पुजारी ने कहा कि तेलंगाना के कन्नाईगुड़ा गांव से 15 अप्रैल को मजदूरों का एक समूह बच्ची के साथ पैदल यात्रा पर अपने घर की ओर निकला था।
संभवतः 18 अप्रैल को उसकी मृत्यु हो गई। उन्होंने कहा कि बच्ची का COVID -19 परीक्षण नेगेटिव निकला।
लड़की के पिता ने बताया, “वह उल्टी और पेट दर्द से पीड़ित थी।”
पुजारी ने कहा, “तेलंगाना में उस स्थान के बीच की दूरी जहां उसने काम किया था और बीजापुर 150 किलोमीटर है और वह अपने पैतृक गांव से कुछ किलोमीटर दूर थे।”
उन्होंने कहा, “उसने शनिवार सुबह खाना खाया लेकिन फिर पेट में दर्द और बेचैनी की शिकायत हुई और सुबह 10 बजे के आसपास उसकी मौत हो गई।”
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